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क्रिया-कोश
२८५ जो ईश्वर, ब्रह्मा, पुरुषादि को जगत का आदि कर्ता-निर्माता मानते थे उनको निर्मितवादी ईश्वरकारणिकवादी-आत्मवादी कहा जाता था। निर्मितवादी-ईश्वरकारणिकवादी के मत का प्रतिपादन :
इणमन्नं तु अन्नाणं, इहमेगेसिमाहियं । देवेउत्त' अयं लोए, बम्भउत्त इ आवरे ।। ईसरेण कडे लोए, पहाणाइ तहावरे । जीवाजीव समाउत्त, सुहदुक्खसमन्निए ।। सयंभुणा कडे लोए, इइ वुत्त महेसिणा। मारेण संथुया माया, तेण लोए असासए । माहणा समणा एगे, आह-'अंडकडे जए'। 'असो तत्तमकासी य-अयाणंता मुसं वए।
-सूय श्रु १ ! अ १ ! उ ३ । गा ५ से ८। पृ० १०३.४ । लोक को किसी के द्वारा निर्मित मानने वाले भी एक मत नहीं थे कोई कुछ कहता था, कोई कुछ। सृष्टि के निर्माण के सम्बन्ध में निम्न प्रकार के मत थे
(१) कोई कहता था कि यह लोक देव के द्वारा उप्त-वीज-वपन से उत्पन्न
(२) किसी का मत था कि यह लोक ब्रह्मा के द्वारा उत्पन्न है ।
(३) कोई एक कहता था कि यह लोक प्रधान अर्थात् सत्त्व-रज-तम गुण के साम्य से निष्पन्न है ।
(४) कतिपय का यह मत था कि यह लोक स्वभाव से उत्पन्न है । (५) कुछ एक कहते थे कि यह लोक नियति से कृत है।
(गा ४ तथा ५ की टीका के आधार पर) (६) किसी का मत था कि यह लोक स्वयंभू (स्वतः अपने-आप उत्पन्न ) के द्वारा कृत-निष्पन्न है तथा स्वयंभूकृत लोक में यमराज की माया व्याप्त है इसीसे यह लोक परिवर्तनशील और अनित्य अनुभूत होता है ।
(७) कई श्रमण-माहण कहते थे कि यह लोक अंडे से उत्पन्न हुआ है । (८) कुछ का मत था कि ब्रह्मा ने लोकतत्त्व की रचना की है।
अहावरे तच्चे पुरिसजाए ईसर-कारणिए त्ति आहिजइ। xxx । इह खलु धम्मा पुरिसादिया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूया पुरिस-पज्जोइया पुरिसअभिसमण्णागया पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति ।
-सूय० २ 1 अ १ । सू ११ । पृ० १३६
"Aho Shrutgyanam"