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________________ नत्थि हु सकिरियाणं अबंधगं किंचि इह अणुट्ठाण---- ___-आव० मलय टीका उक्त भा० गा १४६ यहाँ क्रिया के दो भेद किये गये है--यथा----सदनुष्ठान क्रिया तथा असदनुष्ठान क्रिया। सदनुष्ठान क्रिया से निर्जरा के साथ-साथ पुण्यकर्म का बन्धन भी होता है। यह पुण्यकर्म लम्बी स्थिति का भी हो सकता है या दो समय की स्थिति का भी हो सकता है । ऐर्यापथिकी क्रिया में दो समय को स्थितिवाले ऐपिथिकी कर्म का ही बन्धन होता है ( देखो क्रमांक ३७.४ )! प्रशस्त योग-क्रिया से कमों की निर्जरा होती है । ( देखो उत्त० अ २६ । सू८) जोव कमों से बँधा हुआ है, उनसे छुटकारा पाने के लिए क्रिया करने की आवश्यकता होती है । इसी कारण कहा गया है कि 'ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्षः।' मोक्ष - ( कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः) कर्मों का सम्पूर्ण नाश करने के लिए शान के साथ-साथ क्रिया-सदनुष्ठान-प्रशस्त कियाओं का करना आवश्यक है । यद्यपि शेष समय में-- अन्तकिया करने के समय में - मोक्ष प्राप्त करने के समय में जीव को सर्वथा अक्रिय होना पड़ता है लेकिन उस अवस्था के आगे कर्म काटने के लिए सभी जीवों को प्रशस्त क्रिया करनी होती है बिना क्रिया किए-बिना कर्म-बल-वीर्य-पुरुषाकार-पराक्रम किये--बन्धे हुए कर्मों से छुटकारा नहीं हो सकता है । ___ सामान्यतः २५ कियाएँ ( पाँच-पाँच क्रियाओं के पाँच पंचक ) प्रसिद्ध है। (देखो क्रमांक ६६) लेकिन आगमों में अन्य क्रियाओं का भी यत्र-तत्र वर्णन मिला है । तथा टीकाकार अभयदेवसूरि ने भी एजनादि क्रियाओं का ( देखो क्रमांक ६३.४) वर्णन करके लिखा है कि इसी प्रकार अन्य क्रियाओं को भी सोच लेना चाहिए। जीव पुद्गल के सहयोग से जितने प्रकार की क्रिया कर सकता है उतने प्रकार की क्रियाएँ हो सकती हैं। कोश में ५३ क्रियाओं ( देखिये क्रमांक ११ से '६३ ) के पाठों का संकलन किया गया है। जीव के क्रियामात्र से कर्म का बन्धन होता है-चाहे पुण्यकर्म का बन्धन हो चाहे पापकर्म का--क्रिया से कर्म बन्धन अवश्य होता है। क्रिया को जो कर्मबन्धन का निमित्तभूत कहा गया है वह केवल पापकर्म के बन्धन की दृष्टि से नहीं कहा गया है। पाप या पुण्य दोनों कमों के बन्धन की दृष्टि से कहा गया है। कई क्रियाओं से पापकर्म का बन्धन होता है, यथा आरम्भिकी, कायिकी आदि कई क्रियाओं से पुण्यकर्म का बन्धन होता है, यथा-ऐर्यापथिकी, सम्यक्त्व क्रिया। समास में क्रियाओं का दो विभाग किया गया है-जीवक्रिया और अजीवक्रिया । जीवक्रिया अर्थात जीव अपने परिणामों और अध्यवसायों से जो क्रिया करे वह जीवक्रिया। सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्वक्रिया-जीवक्रिया के उदाहरण हैं। ( देखिये क्रमांक ११) [ 1 ] "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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