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सशरीरी जीव सक्रिय भी होते हैं, अक्रिय भी होते हैं । शैलेशी अवस्था के सशरीरी जीव अक्रिय होते हैं, अशैलेशी अवस्था के सशरीरी जीव सक्रिय होते हैं। मूल वैक्रिय शरीरी जीव, उत्तर वैक्रिय शरीरी जीव तथा आहारक शरीरी जीव सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं। तेजस - कार्मण शरीर बाँधते हुए जोव सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं ।
श्वासोच्छ्वास लेता हुआ जीव सक्रिय होता है, अक्रिय नहीं होता है। श्वासोच्छ्वास क्रिया का तेरहवें गुणस्थान के शेष समय में व्यवच्छेद होता है ।
आहार करता हुआ जीव सक्रिय होता है । जीव सक्रिय होता है, केवली समुद्घात करता हुआ जीव है उतने समय में भी सक्रिय होता है। अयोगी केवली होते हैं ।
सवेदी जीव सब सकिय होते हैं । अवेदी जीव सक्रिय भी होते हैं, अक्रिय भी होते हैं । कोई एक अवेदी जीव सांपरायिक क्रिया भी करता है, कोई एक ऐर्यापथिकी क्रिया भी करता है । ऐatefeat किया अवेदी जीव को ही होती है, सवेदी जीव को नहीं होती है ।
विग्रहगति में वर्तता हुआ अनाहारक
जितने समय में अनाहारक होता तथा सिद्ध-अनाहारक जीव अक्रिय
तं ( इरियावहियं णं भंते ! कम्मं ) भंते ! किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, र्पु सगो बंध; इत्थीओ बंधंति, पुरिसा बंधंति, णपुंसगा बंधंति, णो इत्थी णो पुरिसो णो णपुंसगो बंध ? गोयमा ! णो इत्थी बंध, णो पुरिसो बंध, जाव णो णपुंसगो बंध, पुव्वपडिवण्णए पडुच्च अवगयवेदा वा बंध ति, पडिवज्जमाणए पडुच्च अवगयवेदो वा बंध, अवयवेदा वा बंधंति ।
-भग० श द उ ८ । प्र ११ । पृ० ५५७ ऐपथिक क्रिया से होनेवाला कर्मबंध अवेदी जीव के होता है, स्त्री-पुरुष नपुंसकवेदी जीव के नहीं होता है ।
कई एक अवेदी जीव अक्रिय भी होते हैं ।
कर्मों की उदीरणा में उत्थान - कर्म-बल-वीर्य पुरुषाकार- पराक्रम अवश्य होते हैं । यह वीर्य विशेष योगयुक्त होता है । तेरहवें गुणस्थान के जीव भी नाम और गोत्रकर्म की उदीरणा करते हैं और उत्थान-कर्म-बल-वीर्य पुरुषाकार- पराक्रम का उपयोग करते हैं । उदीरणा करता हुआ जीव सक्रिय होता है । ( देखो भग० श १ । ३ । प्र १३४ ) जीव क्रिया करता है तब उसकी प्रतिक्रिया में उसके कर्म का बन्धन होता है । इसीलिए क्रिया की परिभाषा में कहा गया है कि क्रिया कर्मबन्धन का निमित्तभूत है, कारण है । ( देखो क्रमाक ०६२ ) क्रिया करता हुआ ऐसा कोई जीव नहीं है जो कर्म का बन्धन न करता हो ?
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