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________________ सूक्ष्मवादर काय वाङ्-मनोयोग का निरोध होने से जीव अक्रिय हो जाता है अर्थात अयोगी जीव अक्रिय होता है । सयोगी जीव योग के कारण सक्रिय होता है ! उपयोग जीव का मौलिक गुण है तथा उसका लक्षण है और यह सभी सक्रियअक्रिय जीवों में पाया जाता है। जो उपयोग इन्द्रियादि साधन के बिना होता है वह अपरिम्पंदनात्मक क्रियारहित होता है। जो उपयोग इन्द्रियादि साधनों के द्वारा होता है वह उन साधनों की क्रियासहित होता है । अवधिज्ञानोपयोग, मनःपर्यवशानोपयोग, केवलज्ञानोपयोग, विभंग-अज्ञानोपयोग, अवधिदर्शनोपयोग, केवलदर्शनोपयोग--ये आधार के बिना होते है अतः इन उपयोगों में साधन क्रिया नहीं होती है | अवधिज्ञानोपयोग-मनःपर्यवज्ञानोपयोग, विभंगअज्ञानोपयोग, अवधि दर्शनोपयोग-चार उपयोग वाले जीव सयोगी ही होते हैं अतः योग की अपेक्षा क्रियासहित होते हैं। केवलज्ञान तथा केवलदर्शनोपयोग वाले जीव सयोगी हो तो योग की अपेक्षा क्रिया वाले होते हैं तथा अयोगी हों तो सर्वथा क्रियाहित होते हैं । मतिज्ञानोपयोग, श्रुतज्ञानोपयोग,मतिअज्ञानोपयोग,श्रुतअज्ञानोपयोग, चक्षुदर्शनोपयोग, अचक्षदर्शनोपयोग-ये इन्द्रियादि साधनों के द्वारा होते हैं। इन साधनों से होनेवाली किया-सहित होते हैं तथा ये सब उपयोग स्योगी जीव के ही होते हैं अतः वे जीव योग की अपेक्षा क्रिया-सहित होते हैं। अलेश्यस्य केवलिनः कृत्स्नयोज्ञेयः-दृश्ययोः केवलं ज्ञानम्, दर्शनं च उपयुजानस्य योऽसौ अपरिस्पन्दोऽप्रतिरोधो जीवपरिणामविशेषस्तदकरणम् । -भग० श १ । उ ३ । प्र १३० । टीका __ अलेशी सर्वज्ञ का केवलज्ञानोपयोग तथा केवलदर्शनोपयोग सर्वथा अपरिस्पंदनात्मक अकरण वीर्यवाला अर्थात् सब प्रकार की क्रिया से रहित होता है। मति-श्रुत-अवधि-मनःपर्यवज्ञान वाले जीव क्रियास हित होते हैं, क्रियारहित नहीं होते हैं, केवलज्ञानी जीव क्रियासहित भी होते है, क्रियारहित भी होते हैं । अज्ञानी जीव क्रिया सहित ही होते हैं, क्रिया रहित नहीं होते हैं। अज्ञानी जीव के मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया भी लगती है, ज्ञानी जीव को मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया नहीं लगती है। मिथ्यादृष्टि तथा सममिथ्यादृष्टि जीव कभी क्रियारहित नहीं होते हैं। सम्यग्दृष्टि क्रियासहित भी होते हैं, क्रियारहित भी होते हैं। तेरहवें गुणस्थान तक के सम्यग्दृष्टि जीव क्रिया सहित होते हैं तथा चौदहवें गुणस्थान के सम्यगढष्टि जीव क्रियारहित होते हैं । मिथ्यादृष्टि तथा सममिथ्यादृष्टि जीवों के अन्य क्रियाओं के साथ मिथ्यादर्शनप्रत्यायिकी क्रिया लगती है ; समष्टि जीव के मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया नहीं लगती है । [ 29 ] "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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