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________________ प्रथम गुणस्थान से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक के सभी जीव सक्रिय होते हैं । ( देखो क्रमांक ८११ ) वे प्रतिक्षण कोई न कोई क्रिया करते रहते हैं, किसी भी क्षण में अक्रिय नहीं होते हैं, अतः उनके आत्मप्रदेशों का परिस्पंदन होता रहता है । सशरीरी जीव शरीर से ही सर्व प्रकार की क्रिया करते हैं, ऐसा माना जा सकता है । विग्रहगति में भी जीव कार्मणकाययोग से किया करता है । जोव किया सभी शरीरों से करता है। ये सभी क्रियाएँ परिस्पंदनात्मक हैं । नरक-तिर्यच तथा देवगति के जीव नियम से क्रिया सहित होते हैं, मनुष्य क्रियासहित, क्रियारहित- - दोनों होते हैं, तेरहवें गुणस्थान तक के मनुष्य क्रियासहित होते हैं तथा चोदहवें गुणस्थान के मनुष्य क्रियारहित होते हैं; सिद्धगति के जीव क्रियारहित होते हैं । प्रथम समय के सिद्ध एजना क्रियासहित होते हैं । सक्रिय जीव में पाँचों इन्द्रियाँ पाई जाती हैं, अतीन्द्रिय जीव सक्रिय भी होते हैं, अक्रिय भी होते हैं । इन्द्रिय अपर्याप्त जीव तथा तेरहवें गुणस्थान के अतीन्द्रिय जीव क्रियासहित होते है। चौदहवें गुणस्थान के अतीन्द्रिय जीव तथा असंसारी अतीन्द्रिय सिद्ध जीव क्रियारहित होते हैं । जब तक जीव के कषाय होती है तब तक जीव क्रियासहित होता है । अतः दशवें गुणस्थान तक के जीव कषाय की अपेक्षा क्रियासहित होते है । उनके मायाप्रत्ययिकी क्रिया लगती है । जिस जीव के कषाय नहीं है उसके कषाय की अपेक्षा क्रिया नहीं लगतो है, लेकिन ग्यारहवें बारहवें तेरहवें गुणस्थानवर्ती कषायरहित जीव को ऐर्यापथिको क्रिया लगती है तथा चौदहवें गुणस्थानवर्ती कषायरहित जीव क्रिया से रहित होता है जहाँ लेश्या है वहाँ किसी न किसी प्रकार की क्रिया अवश्य है । परिणाम नहीं है वहाँ किसी भी प्रकार की क्रिया सम्भव नहीं है ! सलेशी जीव सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं, अलेशी जीव अक्रिय होते हैं, सक्रिय नहीं होते हैं । सलेशी नारकी सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं। सलेशी नारकी की तरह दण्डक के सभी सलेशी जीव सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं । जहाँ लेश्या - देखो भग० श ४१ । १ । प्र १२, १७, १६ / ०६३५ जो जीव सयोगी होता है वह क्रियासहित होता है, जो जीव अयोगी होता है वह कियारहित होता है । जहाँ योग है वहाँ क्रिया अवश्य है । मन-वचन-काययोगी की क्रियामों से कर्मबन्धन होता है । योग के साथ कषाय होती है तो सांपरायिकी क्रिया होती है, योग के साथ कषाय नहीं होती है तो ऐर्यापथिकी क्रिया होती है । सूक्ष्मबादर कायवाङ मनोयोगनिरोधादक्रियाः xxx । सयोगित्वात् सक्रिया | - पण्ण० प २२ । सू १५७३ | टीका [ 28 ] "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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