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क्रिया-कोश द्वैतवादः ), तथा-"नित्यज्ञानविवर्तोऽयं, क्षितितेजो जलादिकः । आत्मा तदात्मकश्चेति, संगिरन्ते परे पुनः॥१॥ इति, शब्दाद्वैतवादी तु सर्वशब्दात्मकमिदमित्येकत्वं प्रतिपन्नः, उक्त च-''अमादिनिधनं ब्रह्म, शब्दतत्त्वं यदक्षरम् । विवर्त्ततेऽर्थभावेन, प्रक्रिया जगतो यतः ॥१॥ इति, अथवा सामान्यवादी सर्वमेवैकं प्रतिपद्यते, सामान्यस्यैकत्वादित्येवमनेकधैकवादी, अक्रियावादिता चास्य सद्भूतस्यापि तदन्यस्य नास्तीति प्रतिपादनात् आत्माद्व तपुरुषातशब्दातादीनां युक्तिभिरघटमानानामस्तित्वाभ्युपगमाध।
-ठाण ० स्था ७ ] सू ६०७ । टीका जो चेतन-अचेतन रूप विश्व में व्याप्त एक आत्मा का प्रतिपादन करते हैं वे एकवादी है। एकवादी कई प्रकार के हैं, उनमें से आत्माद्वैतवादी का कथन है कि प्रकृत्यनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक आत्मा व्याप्त है-जैसे कहा है ---एक ही आत्मा सर्वभूतों में व्यवस्थित है। वह जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब की तरह एक या अनेक रूप में परिदर्शित होती है अर्थात् ब्रह्माण्ड में सब कुछ एक आत्मा ही है ।
पुरुषाद्वैतवादी कहते हैं कि इस जगत् में जो हो चुका है और जो होनेवाला है वह सब पुरुष (आत्मा) ही है, वह पुरुष देवत्व का अधिष्ठाता है और वह दूसरे के लिए प्रकट होता है अर्थात वह पुरुष प्राणियों की भलाई के लिए कारणावस्था को छोड़कर जगत के रूप को धारण करता है अर्थात् सब कुछ वह पुरुष ही है। वह गतिशील है और गतिरहित भी है, वह दूर है और निकट भी है, वह सबके अन्दर भी है, बाहर भी है ।
____ कहा गया है कि नित्यज्ञान-आत्मा-पृथ्वी, अग्नि, जल आदि की तरह भिन्नभिन्न प्रतिभासित होता है लेकिन वास्तव में वह एक ही आत्मतत्त्व है। वह संग भी है, निकट भी है, दूर भी है ।
एक शब्द को ही सब कुछ मानने वाले शब्दाद्वैतवादी कहते हैं कि यह जगत शब्दात्मक है अर्थात सर्वत्र शब्दतत्त्व व्याप्त है-जैसे कहा है-वह अनादि अनन्त जो ब्रह्म है वह शब्दतत्त्व-अक्षरमात्र है ---वह अर्थभाव से जगत की प्रक्रिया विविध प्रकार की करता है। . सर्वथा-एकान्त रूप में एकत्व का प्रतिपादन करने वाले एकवादी हैं। एकवादी के अनेक प्रकार है-यथा-आत्माद्वैतवादी, पुरुषाद्वैतवादी, शब्दाद्वैतवादी आदि ।
अस्तु, उनके द्वारा माने गये पदार्थों से भिन्न अन्य सद्भुतभावों का निषेध करने के कारण ; तथा उनके सिद्धान्त का अस्तित्व सिद्ध नहीं होने के कारण आत्माद्वैत, पुरुषाद्वैत, शब्दात आदि एकवादियों को अक्रियावादी कहा जाता है।
"Aho Shrutgyanam"