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२ अनेकवादी परिभाषा / अर्थ
सत्यपि कथञ्चिदेकत्वे भावानां सर्वथा अनेकत्वं वदतीत्यनेकवादी ।
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क्रिया-कोश
जाता है ।
पदार्थ के भावों में कथंचित् एकत्व होने पर सर्वथा एकान्त रूप से अनेकत्व मानने वाले को अनेकवादी कहा जाता था ।
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अनेकवादी के मत का प्रतिपादन
सत्यपि कथञ्चिदेकत्वे भावानां सर्वथा अनेकत्वं वदतीत्यनेकवादी, परस्परविलक्षणा एव भावास्तथैव प्रमीयमाणत्वात्, यथा रूपं रूपतयेति, अभेदे तु भावानां जीवजीवबद्धमुक्त सुखितदुःखितादीनामेकत्वप्रसङ्गात् दीक्षादिवैयर्थ्यमिति, किञ्च– सामान्यमङ्गीकृत्यैकत्वं विवक्षितं परैः, सामान्यं च भेदेभ्यो भिन्नाभिन्नतया चिन्त्यमानं न मुच्यते, एवमवयवेभ्योऽवयवी धर्मेभ्यश्च धर्मीत्येवमनेकवादी, अस्याप्यक्रियावादित्वं सामान्यादिरूपतयैकत्वे सत्यपि भावानां सामान्यादिनिषेवेन तन्निषेधनादिति । -ठाण० स्था ८ | सू ६०७ । टीका
ठाण० स्था८ । सू ६०७ | टीका
कथंचित् एकत्व होने पर भी सर्वथा — एकांतरूप में भावों का अनेकत्व - भिन्नत्व का प्रतिपादन करने वाले अनेकवादी है। उनका कथन है कि सब भाव परस्पर में विलक्षण हैं अर्थात् भिन्न-भिन्न हैं; उसी प्रकार प्रमाणित होता है--जैसे रूप से रूपत्व भिन्न है । यदि भावों का अभेद माना जाय तो जीव, अजीव, बद्ध, मुक्त, सुखी, दुःखी आदि के एकत्व के प्रसंग से दुःख निवारण के लिए ही आदि का ग्रहण निरर्थक हो जाता है । सामान्य को स्वीकार करके दूसरे वादियों ने एकत्व की विवक्षा की है परन्तु सामान्य तथा भेदविशेष की अपेक्षा से भिन्नाभिन्नत्व का विचार सिद्ध नहीं होता है अतः अवयव से अवयवी, धर्म से धर्मी भिन्न है ऐसा अनेकवादी कहते है ।
एकांतरूप से भावों के एकत्व का निषेध करने से अनेकवादी को अक्रियावादी कहा
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३ मितवादी
परिभाषा / अर्थ :
अनन्तानन्तत्वेऽपि जीवानां मितान् परिमितान् वदति xxx मितवादी ।
" Aho Shrutgyanam"