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क्रिया-कोश (छ) अक्रियैव परलोकसाधनायाऽलमित्येवं वदितुं शीलं येषान्तेऽक्रियावादिनः ।
भग० श ३० । उ १1 टीका (ज) तन्निषेषाद क्रियावादिनो - नास्तिका इत्यर्थः ।
ठाण० स्था ४ । उ ४ । सू ३४५ । टीका (झ) क्रिया-अस्तीतिरूपा सकलपदार्थसार्थव्यापिनी सैवायथावस्तुविषयतया कुत्सिता अक्रिया ननः कुत्सार्थत्वात्तामक्रियां वदन्तीत्येवं शीला अक्रियावादिनो, यथावस्थितं हि वस्त्वनेकान्तात्मकं तन्नास्त्येकान्तात्मकमेव चास्तीति प्रतिपत्तिमन्त इत्यर्थः, नास्तिका इति भावः, एवंवादित्वाञ्चते परलोकसाधकक्रियामपि परमार्थतो न वदन्ति, तन्मतवस्तुसत्वे हि परलोकसाधकक्रियाया अयोगादित्यक्रियावादिन एव ते इति।
ठाण० स्था ८ । सू ६०७ । टीका जो व्यक्ति नास्तिकवादी, नास्तिक प्रज्ञावाला, नास्तिक दृष्टिवाला है तथा सम्यगवादी नहीं है तथा जो अनित्य (क्षणिक) वादी है, परलोक की सत्ता नहीं मानने वाला है; जो कहता है -इहलोक नहीं है, परलोक नहीं है, माता-पिता नहीं है, अरिहंत-चक्रवर्तीबलदेव-वासुदेव नहीं है, नरक नहीं है, नारकी नहीं है, सुकृत-दुष्कृत कर्मों का फल-विशेष नहीं है, अच्छे कर्मों का अच्छा फल नहीं है, बुरे कर्मों का बुरा फल नहीं है, पुण्य पाप का फल नहीं होता है, जीव संसार में परिभ्रमण नहीं करता है, नरकादि गति नहीं है, सिद्धि नहीं है ऐसा जिसका वाद (दर्शन), प्रज्ञा और दृष्टि है तथा ऐसा जिसका अभिप्राय, प्रतीति, मति और प्रवृत्ति है-वह अक्रियावादी है ।
अक्रियावादी-क्रिया है ही नहीं---ऐसा मानता है अर्थात् जो कुछ होता है वह स्वयमेव होता है, उसमें क्रिया तथा क्रिया के फल की कोई बात नहीं है।
अक्रियावादी आत्मादि किसी का भी अस्तित्व नहीं मानता है और वह प्रत्येक पदार्थ के लिए नहीं है-ऐसा कहता है ।
जीवाजीवादि पदार्थ नहीं है ऐसा अक्रियावादी कहता है तथा असदभत पदार्थ के प्रतिपादन के कारण वह मिथ्यादृष्टि है ।
अक्रिया परलोक साधन के लिए यथेष्ट है, ऐसा कहने वाला अक्रियावादी है। ६२६२ अक्रियावादी के भेद : ---
१ आठ भेद
अट्ठ अकिरियावाई पन्नत्ता, तंजहा-एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, निम्मितवाई, सायवाई, समुच्छेदवाई, णियावाई, ण संति परलोगवाई।
--ठाण० स्था८सू६०७ 1 पृ० २८८
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