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________________ क्रिया-कोशे पाप करने के तीन आदान हैं, यथा-(१) प्राणियों को स्वयं मारना, (२) अन्य द्वारा मरवाना, (३) मारने का अनुमोदन करना। - इन मिथ्यादृष्टि क्रियावादियों की मान्यता है कि उपर्युक्त तीनों आदानों से हिंसा करते हुए भी यदि व्यक्ति के भाव विशुद्ध है अर्थात् प्राणी के प्रति द्वेष नहीं है तो उसके पापकर्म का बन्धन नहीं होता और वह निर्वाण-मोक्ष को प्राप्त करता है । . इस पर दृष्टांत देते हुए वे कहते हैं कि -जैसे यदि कोई गृहस्थ पिता अपने पुत्र को बिना द्वेष से मारकर उसका भोजन करता है तो वह कर्म से लेपायमान नहीं होता है वेसे हो मेधावी (रागद्वेष रहित) जीव हिंसा करता हुआ भी कर्म से लेपायमान नहीं होता है । '२'६ अक्रियावादी '१२.६१ परिभाषा | अर्थ (क) अकिरियावाई यावि भवइ, नाहियवाई, नाहियपण्णे, नाहियदिट्ठी, णो सम्मावाई, णो णितियावाई, ण संति परलोगवाई, णत्थि इहलोए, णस्थि परलोए, णस्थि माया, णस्थि पिया, णत्थि अरिहंता, णत्थि चक्कवट्टी, णथि बलदेवा, णत्थि वासुदेवा, णत्थि णिरया, णत्थि णेरड्या, णस्थि सुक्कडदुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, णो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला भवंति, णो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला भवंति, अफले कल्लाणपावए, णो पञ्चायन्ति जीवा, णत्थि णिरय, णत्थि सिद्धि, से एवंवाई, एवं पण्णे, एवंदिट्ठी, एवं छंदरागमणिविट्ठे यावि भवई। -दसासु । द ६ । सू २ | पृ० १२६ (ख) णो किरियमाहंसु अकिरियवाई। -सूय० श्रु १ । अ१२ । गा ४ पृ० १२८ (ग) नत्थि ति (अ) किरियावाई य । --सूय श्रु. १ । अ १२ । गा १ । नि गा ११८ (घ) नास्त्येव जीवादिकः पदार्थ इत्येवं वादिनोऽक्रियावादिनस्तेप्यसद्भतार्थप्रतिपादनान्मिध्यादृष्टय एव। --सूय श्रु १ । अ १२ । गा १ । टीका (च) अक्रियां जीवादिपदार्थो नास्तीत्यादिकां वदितुं शीलं येषान्तेऽक्रियावादिनः । -भग० । श २६ ! उ २ । टीका "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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