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________________ દ્ क्रिया-कौश इस तरह जीवादि नव तत्त्वों में से प्रत्येक के बीस-बीस भेद हुए और कुल मिथ्या दृष्टि क्रियावादी के १८० भेद प्रक्रिया से हुए । अभयदेवसूरि ने भी ( ठाण० स्था ४ । ४ । सू ३४५ की टीका ) मिथ्यादृष्टि क्रियाबादी के इसी प्रकार १८० भेद किये हैं । '६२५३ क्रियावादी मिध्यादृष्टि के सिद्धांत: (क) अहावरं पुरखायं किरियावाइ दरिसणं । कम्म चिन्तापणट्ठाणं, संसारस्स पवढर्णं ॥ जाणं restraट्टी, अहो जंच हिंसइ । परं अवियत्तं खु सावज्जं ॥ पुट्ठो संवेयर :– -- सूय० श्रु १ : अ १ । उ २ । गा० २४-२५ । निगा० १०३ (ख) कम्मं चयं न गच्छत्र चउव्विहं भिक्खुसमयम्मि । --सूय० श्रु १ । अ १ । उ२ । निगा ३१ टीका - तत्र परिक्षोपचितमविज्ञोपचिताख्यं भेदद्वयं साक्षादुपात्तम् । शेषं वीर्यापथस्वप्नांतिकभेदद्वयं च शब्देनोपात्तम् । मिथ्यादृष्टियों का क्रियावादी दर्शन कर्मबंधन की चिन्ता से रहित तथा संसार परिभ्रमण का प्रवर्द्धक है । इन क्रियावादियों का मत है कि चार प्रकार की हिंसक क्रियाओं से कर्म का बन्धन नहीं होता है, यथा (१) मन में हिंसा के भाव रहते हुए भी काया से हिंसा का न होना । (२) मन में हिंसा के भाव न रहते हुए भी काया से हिंसा का होना । (३) जाना आना- गमनागमन मात्र से होने वाली हिंसा । ( ४ ) स्वप्न में होनेवाली वैचारिक हिंसा । उनका कथन है कि इन चार प्रकार को हिंसाओं से कर्म का आत्मा के साथ स्पर्शमात्र अनुभव होता है परन्तु लेप और बन्धन नहीं होता है 1 (ग) संतिमे तर आयाणा, जेहिं कीर३ पावगं । अभिम्मा य पेसा य, मणसा अणुजाणिया ॥ एए उ तर आयाणा, जेहिं कीरइ पावगं । एवं भावविसोहीए, निव्वाणमभिगच्छई ॥ पुत्तं पिया समारम्भ, अहारेज्ज असंजए । भुंजमाणो य मेहावी, कम्मुणा नोवलिप्पइ ॥ --सूय० अ १ । अ १ | उ २ । गा २६ से २८ । पृ० १०३ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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