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क्रिया-कोश
२७२ टोका--क्रियावादिनामशीत्युत्तरशतं अक्रियावादिनां चतुरशीतिरज्ञानिकानां सप्तषष्टिवैनयिकानां द्वात्रिंशदिति । तत्र सर्वेष्येते मौलास्तस्तिष्याश्च प्रवदनशीलत्वात्प्रावादुकास्तेषां च भेदसंख्या परिज्ञानोपाय आचार एवाभिहित इति नेह प्रतन्यते। (ख) असिसयं किरियाणं, अकिरियाणं च होइ चुलसीई । अन्नाणिय सत्तट्टी, वेणइयाणं च बतीसा॥
-सूय० श्रु १। अ १२ । गा १ । नि गा ११६ (ग) क्रियावादिनामशीत्यधिक शतं भवति तच्चानया प्रक्रियया । तद्यथा। जीवादयो नव पदार्थाः परिपाट्या स्थाप्यन्ते । तदधः स्वतः परत इति भेदद्वयं ततोप्यधो नित्या नित्यभेदद्वयं ततोप्यधस्तात्परिपाट्या कालस्वभावनियतीश्वरात्मपदानि पंच व्यवस्थाप्यन्ते । ततश्चैवं चारणिका प्रक्रमः । तद्यथा । अस्ति जीवः स्वतो नित्यः कालतः । तथाऽस्ति जीवःस्वतोऽनित्यः कालत एव । एवं परतोपि भंगद्वयम् । सर्वेपि च चत्वारः कालेन लब्धाः। स्वभावनियतीश्वरात्मपदान्यपि प्रत्येकं चत्वार एव लभन्ते। ततश्च पंचापि चतुष्काविंशतिर्भवति । सापि जीवपदार्थेन लब्धा । एवमजीवादयोप्यष्टौ प्रत्येक विंशतिं लभन्ते । ततश्च नवविंशतयो मीलिताः क्रियावादिनामशीत्युत्तरशतं भवति ।
-सूय श्रु १ । अ १२ ! गा १। टीका आगम में क्रियावादादि प्रावादुक मिथ्याष्टि वादों की संख्या ३६३ बतलाई गयी है उनमें क्रियावादी की संख्या १८० बतलायी गई है।
उपर्युक्त क्रियावाद के १८० भेद टीकाकार के अनुसार नव तत्त्वों के आधार पर प्रक्रिया से होते हैं।
जीव, अजीव, आस्तव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा, मोक्ष-इन नव पदार्थों के स्व और पर की अपेक्षा अठारह भेद हुए ; इन अठारह के नित्य-अनित्य की अपेक्षा से छत्तीस भेद हुए । इनमें से प्रत्येक के काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर, आत्मा आदि कारणों की अपेक्षा पाँच-पाँच भेद करने से १८० भेद हुए।
यथा-जीव स्वरूप से काल की अपेक्षा नित्य है, जीव स्वरूप से ईश्वर की अपेक्षा नित्य है । इसी प्रकार जीव स्वरूप से आत्मा, नियति, स्वभाव की अपेक्षा नित्य है । इस प्रकार नित्यपद से पाँच भेद होते है ; नित्यपद की तरह अनित्य पद के भी पाँच भेद होते है। इस प्रकार जीव के स्वरूप से नित्य, अनित्य की अपेक्षा दस भेद होते है। जिस प्रकार जीव के स्वरूप से नित्य-अनित्य की अपेक्षा दस भेद होते है उसी प्रकार जीव के पररूप से नित्यअनित्य को अपेक्षा दस भेद होते है।
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