________________
क्रिया - कोश
२६५ अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, नो वेणश्यवाई । एवं पुढविकाइयाणं जं अत्थि तत्थ सम्वत्थ वि एयाइ दो मज्झिल्लाई समोसरणाई जाव अणागारोवउत्तावि । एवं जाव --- चउरिंदियाणं । सब्बट्टाणेसु एयाइं चैव मज्भिल्लगाई दो समोसरणाई । सम्मत्तनाणे वि एयाणि चेव मज्झिल्लगाइ दो समोसरणाई |
पंचिदियतिरिक्खजोणिया जहा जीवा । नवरं जं अत्थि तं भाणियव्वं । मणुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेसं ।
वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा ।
- भग० श ३० उ १ । प्र २ से ६ | पृ० ६०५-६०६
जीव क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी होते हैं ।
सलेशी, कृष्णलेशी, यावत् शुक्ललेशी जीव चारों प्रकार के वादी होते हैं। अलेशी जीव केवल क्रियावादी होते हैं ।
कृष्णपाक्षिक जीव क्रियावादी नहीं होते हैं, अन्यवादी होते हैं; शुक्लपाक्षिक जीव चारों वादी होते हैं ।
सम्यग्टष्टि जीव केवल क्रियावादी होते हैं; मिथ्यादृष्टि जीव क्रियावादी नहीं होते हैं, अन्यवादी होते हैं; सममिध्यादृष्टि जीव क्रियावादी तथा अक्रियावादी नहीं होते हैं, अज्ञानवादी तथा विनयवादी होते हैं ।
ज्ञानी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी जीव केवल क्रियावादी होते हैं; अज्ञानी, मति - अज्ञानी, श्र त अज्ञानी, विभंग- अज्ञानी जीव क्रियावादी नहीं होते है, अन्यवादी होते हैं ।
आहार भय मैथुन - परिग्रह संज्ञा में उपयोगवाले जीव चारों वादी होते हैं; संज्ञा में उपयोग रहित जीव केवल क्रियावादी होते हैं ।
सवेदक, स्त्री-पुरुष नपुंसक वेदक जीव चारों वादी होते हैं; अवेदक जीव केवल क्रियावादी होते हैं ।
सकषायी, क्रोध-मान- माया लोभ कषायी जीव चारों वादी होते है ; अकषायी जीव केवल क्रियावादी होते हैं ।
सयोगी, मन-वचन-काययोगी जीव चारों वादी होते हैं; अयोगी जीव केवल क्रियावादी होते हैं ।
साकार - अनाकारोपयोग वाले जीव चारों वादी होते हैं ।
नारकी जीव चारों वादी होते हैं ।
सलेशी यावत् अनाकारोपयोग तक जो-जो विशेषण नारकी में पाये जय उन-उन
३४
" Aho Shrutgyanam"