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________________ क्रिया-कोश २६३ जो जीवाजीवादि नव पदार्थों के अस्तित्व में विश्वास करता है तथा उनके नित्या. नित्य एवं स्व-पर तथा काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर, आत्मा, आदि कारणों को सकलभाव से तथा सापेक्षभाव से अनेतकांत दृष्टि से मानता है वह सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है । जो जीव आत्मवादी है अर्थात् आत्मा के अस्तित्व को मानता है तथा जो लोकवादी है अर्थात् षद्रव्यात्मक लोक को मानता है तथा जो कर्मवादी है अर्थात् जो जीव का कर्मपुद्गलों से बंधन होता है इस बन्ध-पुण्य-पाप तत्त्व को मानता है तथा जो कियावादी है अर्थात क्रिया करने से आत्मप्रदेशों का कर्म से बंधन होता है अथवा उत्थान-कर्मबल-वीर्य-पुरुषाकार-पराक्रम रूप सक्रियाओं से कर्मों का नाश होता है---मोक्षपरिनिर्वाण प्राप्त होता है-इस तत्त्व को मानता है ! ऐसा क्रियावादी-सम्यग्दृष्टि क्रियाबादी होता है। जी जीव क्रिया और ज्ञान दोनों के संयोग से स्वर्ग-अपवर्ग---मोक्ष का साधन मानता है वह सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है ! ____ जो दर्शन, शान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति, गुप्ति आदि क्रियाओं में रुचि रखता है वह सम्यग्दृष्टि है तथा उसको सम्यग्दृष्टि क्रियावादी कहा जा सकता है । ( देखो क्रमांक ०४.३१) दशाश्रुतस्कंध दशा ६ सू १७ में (देखो क्रमांक ६२४) जिस अस्ति क्रियावादी का वर्णन है वह सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है । सूयगडांग श्रु १ । अ १२ । गा २०, २१ ( देखो क्रमांक ६.२.४} में जिस क्रियावाद विज्ञाता का वर्णन है वह सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है । __सम्यग्दृष्टि जीव क्रियावादी होते हैं (देखो भगवई श ३० उ १) ६२.४ ३.२ सम्यगद्दष्टि क्रियावादी जीव और भव्यता तथा शुक्लपाक्षिकता (क) जो किरियावाई सोणियमा भविओ, णियमा सुक्कपक्खिओ अंतोपुग्गलपरिअट्टस्स सिज्झइ। -दशा० । चूर्णी (ख) किरियावाई भब्वे णो अभव्वे सुक्कपक्खिए णो किण्हपक्खिए। -ठाण° स्था २ । उ २ । सू ७६ । टीका में उद्धृत जो ( सम्यग्दृष्टि ) क्रियावादी है वह नियम से भव्य है ; शुक्ल पाक्षिक है तथा अर्धपुदगल परावर्त काल में सिद्ध होता है। क्रियावादी अभव्य तथा कृष्णपाक्षिक नहीं होता है। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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