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क्रिया-कोश (ग) अस्थि त्ति किरियवाई वयंति ।
-----सूय शु १ । अ १२ । गा० १ । नि० गा० ११८ (घ) क्रिया--जीवादिपदार्थोऽस्तीत्यादिकां वदितं शीलं येषां ते क्रियावादिनः।
- सूय शु० १। अ १२ । गा १ । टीका (च) क्रिया जीवाजीवादिरर्थोऽस्तीत्येवं रूपां वदन्तीति क्रियावादिनः आस्तिका इत्यर्थ ।
--ठाण० स्था ४ । उ ४ । सू ३४५ । टीका (छ) क्रियावादमस्ति जीवोऽस्ति पुण्यमस्ति च पूर्वाचरितस्य कर्मणः फलमित्येवं बादमिति ।
---सूय श्रु १ । अ १२ । गा २१ । टीका (ज) जीवादिपदार्थसद्भावोऽस्त्येवेत्येवं सावधारणक्रियाभ्युपगमो येषां ते अस्तीति क्रियावादिनः।xxxi
-सूय. श्रु १ । अ १२ 1 गा । टीका जो व्यक्ति अस्तिवादी, अस्ति प्रज्ञावाला, अस्ति दृष्टिवाला, सम्यग्वादी, नित्यवादी, परलोकवादी है तथा इहलोक है, परलोक है, माता है, पिता है, अरिहंत है, चक्रवती है, बलदेव है, वासुदेव है, सुकृत-दुष्कृत कर्मों का फल विशेष है, अच्छे कर्मों का अच्छा फल है, बुरे कर्मों का बुरा फल है, पुण्य-पाप का फल होता है, जीव संसार में परिभ्रमण करते हैं, नारक, तिर्यच, मनुष्य तथा देव है, सिद्धि है, ऐसा जिसका वाद ( दर्शन ), प्रज्ञा और दृष्टि है तथा ऐसा जिसका अभिप्राय, प्रतीति, मति, प्रवृत्ति है वह क्रियावादी है ।
जो व्यक्ति आत्मा, है, लोक है, गति है, आगति है, शाश्वत-अशाश्वत है, जन्ममरण-उपपात है, दुःख-सुख है, निर्जरा है, बंध है-इत्यादि जानता है वह क्रियावाद का कथन कर सकता है अर्थात् वह क्रियावादी है।
जो जीव अजीवादि पदार्थ है-~-ऐसा प्रतिपादन करते हैं वे क्रियावादी हैं । .२ क्रिया-कर्मबंधन के हेतु के आधार पर क्रियावाद :--
कर्मयोगनिमित्तं बध्यते, योगश्च व्यापारः स च क्रियारूपः, अतः कर्मणः कार्यभूतस्य वदनात् तत्कारणभूतायाः क्रियाया अप्यसावेव परमार्थतो वादीति, क्रियायाश्च कर्मनिमित्तत्वं प्रसिद्धमागमे, स चायमागमः-“जीवे णं भंते । एस जीवे सया समियं एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टइ तिष्पइ जीवो तं तं भावं परिणमइ तावं च णं अट्ठविहबंधए वा सत्तविहबंधए वा, छविहबंधए वा एगविहबंधए वा, णोणं अंबंधए” त्ति । एवं च कृत्वा य एव कर्मवादी स एव क्रियावादीति । अनेन च सोख्याभिमतमात्मनोऽक्रियावादित्वं निरस्तं भवति ।
__-आया० ७ १ अ १ । सू ५ । टीका
"Aho Shrutgyanam"