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क्रिया-कोश (छ) कइ णं भते ! समोसरणा पन्नत्ता ? गोयमा! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तंजहा-किरियावाई, अकिरियावाई, अन्नाणियवाई, वेणइयवाई ।
-भग० श० ३० । उ १ । प्र १ । पृ. ६०५ (ज) तत्थ णं जे से पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए, तत्थ नं इमाईतिन्नि तेवढाईपावादुय-सयाई भवंतीति मक्खायाई, तंजहा-किरियावाईणं, अकिरियावाईणं, अन्नाणियवाईणं, वेणश्यवाईणं।
--सूय श्रु० २ । अ २ । सू २५ । पृ० १५८ भगवान महावीर ने सर्व दर्शनों को लक्षण के आधार पर चार मूल समूहों में विभक्त किया था--(१) क्रियावादो, (२) अक्रियावादी, (३) अज्ञानवादी और (४) विनयवादो।
अस्थि त्ति किरियवाई वयंति, नत्थि त्ति (अ) किरियवाईया। अन्नाणी अन्नाणं, विणवत्ता वेणश्यवाई ।।
-सय० श्र १ । अ १२ । गा १ । नि० गा० ११८ अस्ति लक्षण के आधार पर क्रियावाद, नास्ति लक्षण के आधार पर अक्रियावाद, अज्ञानता लक्षण के आधार पर अज्ञानवाद तथा भक्ति के लक्षण के आधार पर विनयवाद का प्रतिपादन किया गया है।
नोट- इस कोश में हमने क्रिया शब्द के व्यवहार के कारण क्रियावाद तथा अक्रियावाद के पाठों का संकलन किया है । लेकिन क्रियावाद तथा अक्रियावाद कोशों में भी ये पाठ लिये जा सकते हैं ।
६२.३ समवसरण और जीवदण्डक :
चत्तारि वाइसमोसरणा पन्नत्ता, तंजहा-किरियावाई, अकिरियावाई, अन्नाणियावाई, वेणइयावाई। नेरइयाणं चत्तारि वाइसमोसरणा पन्नत्ता, तंजहा-किरियावाई जाव वेणइयावाई। एवमसुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं एवं विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं ।
-ठाण स्था० ४ । उ ४ । सू ३४५ ! पृ० २४८ लोक में जितने भी मत-मतान्तर या दर्शनवाद प्रचलित हैं उनको चार भागों में विभक्त किया गया है ; यथा-(१) क्रियावाद, (२) अक्रियावाद, (३) अज्ञानवाद तथा (४) विनयवाद ।
__ नारकी, असुरकुमार यावद स्तनितकुमारदेव, पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जीव, मनुष्य, वाणव्यंतर, जोतिषो वैमानिक देव में चारों वादी होते हैं।
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