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क्रिया-कोश
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जो व्यक्ति उपयुक्त अर्थ-तत्त्व - पदार्थों में विश्वास नहीं करते हैं; जो कहते हैं क्रियाअक्रिया नहीं है यावत् पुण्य-पाप-फल नहीं देते हैं वे अक्रियावादी हैं; उनका अक्रियावाद दर्शन - समूह में समावेश किया जाता है ।
जो अज्ञान से ही अपना कल्याण मानते हैं वे अज्ञानवादी कहलाते हैं ।
जो किसी भी पर- पदार्थ की विनय या भक्ति में अपना कल्याण मानते हैं वे विनयवादी है ।
अस्तिवाद का क्रियावाद तथा नास्तिकवाद का अक्रियावाद नामकरण क्यों हुआ ? इस पर किसी भी टीकाकार ने कोई प्रकाश नहीं डाला है । हमारे विचार से जो अपने कल्याण के लिए, मोक्ष के लिए, निर्वाण के लिए क्रिया करने का समर्थन करते थे ; वे पदार्थों के अस्तित्व को भी मानते थे अत: उन आस्तिक - स्व-पर कल्याण के लिए किया करने वाले को क्रियावादी कहा गया है और जो स्व-पर के कल्याण के लिए किसी भी प्रकार की क्रिया करने की आवश्यकता नहीं समझते थे क्योंकि वे आत्मादि के अस्तित्व को नहीं मानते थे अतः उनको अक्रियावादी कहा जाता था । उनके नास्तिकवाद में क्रिया भी नहीं है, अक्रिया भी नहीं है ऐसा विशेष वक्तव्य रहता था ( देखो ६२४ ; ६२६ ) । ] ६२२ दर्शनों के क्रिया या अन्य आधार पर मूल विभाग :
(क) चत्तारि वाइसमोसरणा पन्मत्ता, तंजहा -- किरियावाई, अकिरियावाई, अन्नाणियावाई, वेणइयावाई ।
- ठाण०स्था ४ उ ४ । सू ३४५ / पृ० २४८
(ख) किरियाकरियं वेणश्याणुवायं अन्नाणियाणं पडियश्च ठाणं । से सव्ववायं इ वेयइत्ता उवट्ठिए संजमदीहरायं ॥
(ग) पुढो य छंदा इह माणवा उ किरियाकिरीयं च पुढो य वायं । बालस्स पकुव्व देहं पवडई वेरमसंजयस्स ||
जायरस
— सूय० श्रृ १ । अ ६ | गा २७ | पृ० ११६.
ब) किरियं अकिरियं विणयं, एएहिं चउहि ठाणेहि,
(घ) चत्तारि समोसरणाणिमाणी पावाया जाई पुढो वयंति । किरियं अकिरियं विणयं ति तइयं, अन्नाणमाहंसु चउत्थमेव ॥
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— सूर्य ● श्रु १ । अ १० । गा १ । पृ० १२५
- सूघ० श्रु १ । अ १२ । गा १ । पृ० १२७ अन्नाणं च महामुनी । मेयन्ने किं पभासइ ॥
- उत्तः । अ १८ । गा २३ । पृ० १००६
" Aho Shrutgyanam"