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क्रिया-कोश
६१२ काल की अपेक्षा करण-क्रिया के भेद :–→
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अकरिस्सं चाह, कारवेसुं चाहं, करओ आवि समणुण्णे भविस्सामि । एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति ।
-आया० अ १ । उ १ । सू ६-७ / पृ० १
मैंने किया, मैंने कराया, मैंने करते हुए का अनुमोदन किया; मैं करता हूँ, मैं करवाता हूँ, मैं करते हुए का अनुमोदन करता हूँ; मैं करूंगा, मैं कराऊँगा तथा मैं करते हुए का अनुमोदन करूंगा । ये क्रियाएँ मन, वचन तथा काययोग से होती हैं। लोक में इतनी ही कर्मबन्ध के कारण 'करण'- क्रियाएँ हैं । इनको जानना चाहिए । यहाँ मूल में 'किया तथा करवाया' भूतकाल की प्रथम दो क्रियाएँ तथा भविष्यत्काल की शेष क्रिया 'करते हुए का अनुमोदन करूंगा' दी गई हैं। इससे मध्यवर्ती छः क्रियाओं को भी ग्रहण कर लेना चाहिए ।
तथा
टीका–‘अचीकरमहमित्यनेन परोऽकार्यादौ प्रवर्तमानो मया प्रवृत्तिं कारितः, तथा कुर्वन्समन्यमनुज्ञातवानित्येवं कृतकारितानुमतिभिभूतकालाभिधानं, 'करोमीत्यादिना वचनत्रिकेण वर्तमानकालोल्लेखः, तथा करिष्यामि कुर्वतोऽन्यान् प्रति समनुज्ञापरायणो भविष्यामीत्यनागतकालोल्लेख: xxx अनेन क्रियाप्रबन्धप्रतिपादनेन कर्मण उपादानभूतायाः क्रियायाः स्वरूपमावेदितमिति । अथ किमेतावत्य एव क्रियाः उतान्या अपि ( सन्ति ? ) सन्तीति xxx । एतावन्तः सर्वेऽपि 'लोके' प्राणिसंघाते 'कर्मसमारम्भाः' क्रियाविशेषा ये प्रागुक्ताः अतीतानागतवर्तमानभेदेन कृतकारितानुमतिभिश्च अशेषक्रियानुयायिना च करोति ( इत्यादि ? ) न सर्वेषां संग्रहादिति, एतावन्त एव परिज्ञातव्या भवन्ति, नान्य इति । परिक्षा च ज्ञाप्रत्याख्यानभेदाद् द्विधा, तत्र ज्ञपरिज्ञयाऽऽत्मनो बन्धस्य चास्तित्वमेतावदुद्भिरेव सवः कर्मसमारम्भैर्ज्ञातं भवति, प्रत्याख्यानपरिज्ञया च सर्वे पापादानहेतवः कर्मसमारम्भाः प्रत्याख्यातव्या इति । --- आया० अ १ । १ । सू ६-७ । टीका कृत कारित अनुमोदित तीन भूतकाल की; करता हूँ आदि तीन वर्तमानकाल की ; तथा करूंगा आदि तीन भविष्यत् काल की ये नौ करण - क्रियाएँ हुई । यहाँ इन करण --- क्रियाओं के इस प्रतिपादन द्वारा कर्म-बन्ध-निबन्ध के उपादानभूत क्रियाओं का वर्णन किया गया है । सर्वलोक में प्राणिसंघात करनेवाली कर्मसमारम्भ रूप सभी करण -- क्रियाओं का भूत, भविष्यत् व वर्तमानकाल की अपेक्षा से इसमें संग्रह हुआ है; और ये सभी जानने योग्य हैं । इसके अतिरिक्त अन्य कोई किया नहीं होती है ।
परिज्ञा ( जानने ) के 'ज्ञ' परिज्ञा तथा प्रत्याख्यान परिशा दो भेद होते हैं । 'ज्ञ' परिक्षा द्वारा यह ज्ञान होता है कि ये सब कर्मसमारम्भरूप करण - -क्रियाएँ आत्मा के बन्धन
"Aho Shrutgyanam"