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क्रिया-कोश
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इस अपेक्षा से सक्रिय जीव के दो भेद - ऐर्यापथिको किया करने वाला तथा सांप
रायिकी क्रिया करने वाला जीव ।
८६ अक्रिय जीव-
संसारसमापन्नक जीवों में दो प्रकार के जीवों को अक्रिय कहा जाता है-संवृत अणगार जो यत्न ( जयणा ) से सब कार्य करता है, हिंसा से विरत है इत्यादि सद्गुण वाले संवृत अणगार को पापकर्म नहीं बंधने की अपेक्षा से स्थान-स्थान पर अक्रिय कहा गया है । ( देखो क्रमांक ७२४ ) तथा जो जीव चतुर्दशवे गुणस्थान में शैलेशीत्व को प्राप्त होता है उसको योग- परिस्पंदन - एजनादि सर्व अपेक्षा से अक्रिय कहा गया । ( देखी क्रमांक '८११) असंसारसमापन्नक सिद्धों को अनन्तर समय में एजनादि की अपेक्षा -- गतिमान होने के कारण 'सेया' अर्थात एजना सहित कहा गया है; परम्परसिद्ध गतिमान न होने के कारण अक्रिय है (देखो क्रमांक ६३६ ) । अन्यथा सिद्धों को ( सिद्धाश्च देहमनोवृत्त्यभावतोऽक्रिया - पण टीका) देह-मनोवृत्ति के अभाव से अक्रिय कहा गया है ।
६ क्रिया और विविध विषय
*६१ क्रिया और करण :६११ करण की परिभाषा / अर्थ
(क) करणं क्रिया क्रियत इति वा क्रिया ।
- ठाण० स्था २ । उ १ । सू६० । टीका (ख) क्रियते येन तत्करणं-मननादिक्रियासु प्रवर्तमानस्यात्मन उपकरणभूतस्तथा — ठाणः स्था ३ । उ १ । सू १२४ | टोका साधकतमं कृतिर्वा । करणं - क्रियामात्रम् । -भग० श १६ । उ ६ प्र १, २ । ढीका
(घ) करणीयक्रिया तु यद्येन प्रकारेण करणीयम् तत्तेनैव क्रियते नान्यथा । - सूय० श्रु २ । अ २ । सू १ । पृ० १४५ | टीका
तथा परिणामवत्पुद्गलसंघात इति भावः । (ग) क्रियतेऽनेनेति करणं --- क्रियायाः
करण— करना किया है अथवा जो किया जाय वह क्रिया है । जिसके द्वारा किया जाय वह करण है । क्रिया का साधन अथवा करना वह करण - क्रियामात्र करण है । जो कुछ भी किया जाय वह किया उनसे अन्यथा नहीं ।
जितने प्रकार के करण हैं उतने प्रकार की किया है,
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"Aho Shrutgyanam"