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क्रिया-कोश
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ऐर्यापथिकी क्रिया मनुष्य के अतिरिक्त अन्य किसी दंडक के जीवों में नहीं होती है। मनुष्य में भी उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगी केवली-इन तीन गुणस्थानवी जीवों में ही होती है। अयोगी केवली गुणस्थान में भी नहीं होती है।
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.८६ महायुग्म जीव और सक्रियता-अक्रियता :---
[जब एक दंडक के अनेक जीव एक साथ उत्पन्न होते हैं और वह संख्या बड़ी होती है तो उस संख्या को महायुग्म राशि कहते हैं। महायुग्म राशि के कृतयुग्मकृतयुग्मादि सोलह भेद होते हैं ।
महायुग्म के सोलह भेद राशि (संख्या) तथा अपहार समय की अपेक्षा से किये गये हैं । जिस राशि में प्रतिसमय चार-चार घटाते-घटाते शेष में चार बाकी रहे तथा घटाने के समयों में से भी चार-चार घटाते-घटाते चार बाकी रहे वह कृतयुग्म कृतयुग्मराशि कहलाती है क्योंकि घटाने वाले द्रव्य तथा समय की अपेक्षा दोनों रीति से कृतयुग्म रूप है । सोलह की संख्या जघन्य कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि रूप है। उसमें से प्रतिसमय चार घटाते-घटाते शेष में चार बचते है तथा घटाने के समय भी चार होते हैं अथवा उन्नीस की संख्या में प्रति समय चार घटाते-घटाते शेष में तीन शेष रहते हैं तथा घटाने के समय चार लगते हैं। अतः १६ की संख्या जघन्य कृतयुग्मन्योज कहलाती है । इसी प्रकार अन्य भेद जान लेने चाहिए।
यहाँ पर महायुग्मराशि एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय-छः प्रकार के जीवों का “कहाँ से उपपात" आदि तेतीस पदों से विवेचन किया गया है तथा विस्तृत विवेचन कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय पद में है, अवशेष महायुग्म पदों में इसकी भुलावण है तथा जहाँ भिन्नता है वहाँ भिन्नता बतलाई गई है । स्थानस्थान पर उत्पल उद्देशक ( भग० श ११ । उ १) की भलावण है।
हमने यहाँ पर अठारवें पद "सक्रिय-अक्रिय" की अपेक्षा पाठों का संकलन किया है । ]
'८६.१ महायुग्म एकेन्द्रिय जीव :--.
तेसि णं (कडजुम्मकडजुम्मएगिदिया ) भंते ! जीवाणं सरीरा कइवण्णाजहा उप्पलुद्देसए सवत्थ पुच्छा ( जीवा किं सकिरिया, अकिरिया ?) गोयमा ! जहा उप्पलुद्देसए xxx सकिरिया, नो अकिरिया { xxx i (प्र १०)
"Aho Shrutgyanam"