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________________ क्रिया-कोश णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कजइ ? गोयमा ! सव्वदेव्वसु, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवं कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं, पेज्जेणं, दोसेणं, कलहेणं, अब्भक्खाणणं, पेसुन्नेणं, परपरिवाएणं, अरहरईए, मायामोसेणं, मिच्छादसणसल्लेणं । सव्वेसु जीवनेरइयभेदेसु भाणियन्वं निरंतरं जाव वेमाणियाणं ति, एवं अट्ठारस एते दंडगा। -पण्ण ० प २२ । सू १५७४-८० । पृ० ४७६ जीव प्राणातिपात के द्वारा छः जीवनिकायों में ही क्रिया करते हैं। इसी प्रकार नारकी से लेकर निरंतर यावत् वैमानिक तक के जीव प्राणातिपातिकी किया करते हैं । जीव सब द्रव्यों के विषय में मृषावाद के द्वारा क्रिया करते हैं। इसी प्रकार नारकी से लेकर निरंतर यावत वैमानिक तक के जीव मृषावादक्रिया करते हैं। जीव ग्रहणीय और धारणीय द्रव्यों के विषय में अदत्तादान के द्वारा क्रिया करते हैं। नारकी से लेकर निरंतर यावत् वैमानिक तक के जीव इसी प्रकार अदत्तादानक्रिया करते हैं। जीव, रूप (चित्र, लेप, काष्ठादि की मूर्ति ) के विषय में अथवा रूपी द्रव्यों के सहगमन से---यथा स्त्री आदि के सहगमन से मैथुन के द्वारा क्रिया करते हैं। नारको से लेकर निरंतर यावत् वैमानिक तक के जीव इसी प्रकार मैथुन क्रिया करते हैं। जीव सब द्रव्यों के विषय में परिग्रह के द्वारा किया करते हैं ! नारकी से लेकर निरंतर यावत वैमानिक तक के जीव इसी प्रकार पारिग्राहिकी क्रिया करते हैं। जीव इसी प्रकार सब द्रव्यों के विषय में क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरति-रति, मायामृषावाद और मिथ्यादर्शनशल्य के द्वारा क्रिया करते हैं । नारकी से लेकर निरंतर यावत वैमानिक देव तक के जीव इसी प्रकार सब द्रव्यों के विषय में क्रोध यावत् मिथ्यादर्शनशल्य द्वारा क्रिया करते हैं । अठारह पापस्थान के १८ दण्डक जीव-नारकी भेद से यावत वैमानिक तक कहने चाहिए। .८५ जीव और ऐपिथिकी क्रिया :--- __टोका-तत्र ईरियावहिय' त्ति ईरणमीर्या-गमनं तद्विशिष्टः पन्था ईर्यापथस्तत्र भवा ऐापथिकी, व्युत्पत्तिमात्रमिदं, प्रवृत्तिनिमित्तं तु यत्केवलयोगप्रत्ययमुपशान्तमोहादित्रयस्य सातवेदनीयकर्मतया अजीवस्य पुद्गलराशेभवनं सा ऐपिथिकी क्रिया, इह जीवव्यापारेऽध्यजीवप्रधानत्वविवक्षयाऽजीवक्रियेयमुक्ता । --ठाणस्था २ । उ १ । सू६० । टीका "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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