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क्रिया - कोश
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जीव सक्रिय भी होते हैं, अक्रिय भी होते हैं । क्योंकि जीव दो प्रकार के होते है-संसारसमापन्न और असंसारसमापन्न । असंसारसमापन्न जीव सिद्ध होते हैं और वे अक्रिय होते हैं । संसारसमापन्न जीव दो प्रकार के होते हैं --- शैलेशीप्रतिपन्न तथा अशैलेशी प्रतिपन्न । जो जीव शैलेशी प्रतिपन्न होते है वे अक्रिय होते हैं। जो जीव अशैलेशीप्रतिपन्न होते हैं वे सक्रिय होते हैं । प्रज्ञापना टीकाकार के अनुसार जो जोव शैलेशीत्व को प्राप्त हुए हैं, वे सूक्ष्म तथा बादर काययोग, वचनयोग, तथा मनोयोग का निरोध कर लेते हैं अतः उन्हें अक्रिय कहा गया है ।
शैलेशी - प्रतिपन्न जीव के ऐर्यापथिक तथा एजनादि क्रिया का भी अभाव हो जाता अतः वे सब प्रकार की परिस्पंदनात्मक क्रियाओं से रहित हो जाते हैं । उनकी काया का स्वप्रयोग से किसी प्रकार का परिस्पंदन नहीं होता है, परप्रयोग से परिस्पंदन सम्भव है ।
८१२ दण्डक के जीव की सक्रियता और अक्रियता :---
जीवे मणूसे य अकिरिए वुश्चइ, सेसा अकिरिया न वुच्चति ।
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- पण्ण० प २२ । सू १६०४ | पृ० ४८१
टीका - जीवपदे मनुष्यपदे चाक्रिया इत्यपि वक्तव्यं, विरतिप्रतिपत्तौ व्युत्सृष्ट. त्वेन तन्निमित्त क्रियाया असंभवात् शेषा अक्रिया नोच्यन्ते, विरत्यभावतः स्वशरीरस्य भवान्तरगतस्याव्युत्सृष्टत्वेनावश्यं क्रियासंभवात् ।
जीव सक्रिय भी होते हैं, अक्रिय भी होते हैं। मनुष्य सक्रिय भी होते हैं, अक्रिय भी होते हैं । दण्डक के अवशेष जीव सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते है ।
उपर्युक्त विवेचन कायिकी आदि पंच क्रियाओं से होने वाली हिंसा की अपेक्षा जीव अन्य जीव के प्रति कितना सक्रिय अक्रिय होता है - इस सम्बन्ध में है। जीव पद में कोई एक मनुष्य इस अपेक्षा से अक्रिय है क्योंकि विरति की प्राप्ति में शरीर का व्युत्सर्ग होने के कारण शरीर निमित्तक क्रिया असम्भव है । दण्डक के बाकी के जीव अक्रिय नहीं होते हैं क्योंकि उनके विरति का अभाव होता है तथा भवान्तर के शरीर का व्युत्सर्ग नहीं होने के कारण उनके क्रिया अवश्य सम्भव है ।
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८१३ उत्पल आदि वनस्पतिकायिक जीव की सक्रियता - अक्रियता :
( उप्पले णं भंते! एगपत्तर ) ते णं भंते! जीवा किं सकिरिया अकिरिया ? | गोयमा ! नो अकिरिया, सकिरिए वा सकिरिया वा ।
SHIR -- भग० श ११ । उ १ । प्र २२ | पृ० ६२३
" Aho Shrutgyanam"