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क्रिया-कोश
सालुए णं भंते ! एगपत्तए XXX उप्पलुद्दे सगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा जाव अनंतखुत्तो Xxx
पलासे णं भंते! एगपत्तए XXX उप्पलुद्दे सग-वत्तव्वया - अपरिसेसा भाणियव्वा xxx 1
एगपत्तe xxx एवं जहा - पलासुद्द सए तहा भाणि
यव्वे xxx !
नालिए णं भंते! एगपत्तर xxx एवं कुंभिउह सगवन्तब्वया निरवसेसं ( सा ) भाणियव्वा xxx
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कुंभिए णं भंते!
पउमे णं भंते ! एगपत्तए xxx एवं उप्पलुद्दे सगवत्तव्वया निरवसेसा भाणि
यम्बा xxx 1
कन्निए णं भंते ! एगपत्तए xxx एवं चैव निरवसेसं भाणियध्वं xxx ! नलिणे णं भंते! एगपत्तए xxx एवं चेव निरवसेसं जाय अनंतखुत्तो ।
- भग० श ११ । उ २ से ८ | पृ० ६२५
एकपत्रीय उत्पल जीव सक्रिय होता है, अक्रिय नहीं, तथा सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं । इसी प्रकार एकपत्री शालूक, एकपत्री पलास, एकपत्री कुम्भक, एकपात्री नालिक, एकपत्री पद्म, एकपत्री कर्णिका तथा एकपत्री नलिन वनस्पतिकायिक जीव सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं ।
-८२ जीव और आरंभिकी क्रियापंचक
(क) नेरइयाणं भंते ! कइ किरियाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तंजहा- आरंभिया जाव मिच्छादंसणवत्तिया । एवं जाव वेमाणियाणं । - पण्ण० प २२ । सू १६२७७ ० ४८२-८३
(ख) पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तंजहा- आरंभिया जाव मिच्छाईसणबत्तिया नेरश्याणं पंच किरिया निरंतरं जाव वैमाणियाणं ।
-- ठाण० स्था ५। उ २ । सू ४१६ । पृ० २६२
आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानक्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी --- पाँचों क्रियाएँ नारकी से लेकर यावत वैमानिक देवों तक सभी दण्डकों में पाई जाती हैं ।
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