________________
क्रिया-कोश
अहे के पुरिसे तीसे नावाए सव्त्रओ समंता आसवदाराहिं पिछेइ, पिहित्ता नावा -- उम्सिचणरणं उदयं उहिंसचिज्जा, से नूनं मंडियपुत्ता ! सा नावा तंसि उदयंसि उस्सि चिज्जंसि समाणंसि खिप्पामेव उड्ढं उद्दाइ ? हंता, उद्दाइ !
- भग० श ३ । ३ । प्र १५ का अंश । पृ० ४५७ अक्रिय — कंपन नहीं करने वाले जीव के सकलकर्मक्षय-रूपा - अन्तक्रिया होती -उस जीव के सकल कर्मों का क्षय किस प्रकार होता है-उसको तीन उदाहरण से उक्त पाठ में समझाया गया है ।
२३८
यदि कोई व्यक्ति सूखे घास के पूले को अग्नि में डाले तो वह सूखे घास का पूला अग्नि में डालते ही तुरन्त जल जाता है । यदि कोई व्यक्ति जल की बूँद को तपे हुए तवे या लोहे की कड़ाही पर डाले तो वह जल की बूँद तवे पर डालते ही तुरन्त नष्ट हो जाती है ।
कोई एक सरोवर- -जो पानी से परिपूर्ण हो, पूर्ण भरा हुआ है, लबालब भरा हुआ हो, बढ़ते हुए पानी के कारण उससे पानी छलक रहा हो, पानी से भरे हुए घड़े के समान वह सर्वत्र पानी से भरा हो, उस सरोवर में यदि कोई व्यक्ति, सैकड़ों छोटे छिद्रों वाली तथा सैकड़ों बड़े छिद्रोंवाली एक बड़ी नौका को डाले तो वह पानी से लबालब भर जाती है, उससे पानी छलकने लगता है, तथा पानी से भरे हुए घड़े की तरह पानी से भर जाती है । और यदि कोई व्यक्ति, उस नाव के समस्त छिद्रों को बन्द कर दे तथा नाव में भरे हुए पानी को उलीच दे तो वह नाव तुरन्त पानी के ऊपर आ जाती है ।
इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति एजनादि क्रिया न करे तो उसके सकल कर्म अग्नि में निक्षिप्त घास के पूले तथा तप्त कड़ाही में निक्षिप्त जल बूँद की तरह तुरन्त नष्ट हो जाते हैं । तथा जैसे नौका के छिद्र बन्द हो जाने तथा भरा हुआ पानी उलीच देने से नौका ऊपर उठ जाती है उसी प्रकार कर्मों का आगमन बन्द होने से और आये हुए कर्मों के नष्ट होने से अक्रिय -- कम्पन-रहित जीव का कर्मों से छुटकारा हो जाता है तथा उस जीव की अन्तक्रिया होती है ।
*७३'१७ भगवान् महावीर के कितने शिष्यों ने अंतक्रिया की :
ते णं कालेणं, ते णं समएणं महासुक्काओ कपाओ, महासग्गाओ महाविमाणाओ दो देवा महिड्डिया, जाव-महाणुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउ भूआ ; तएणं ते देवा समणं भगवं महावीरं मणसा चेव वंदति णमंसंति ; माणसा चैव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छति
"Aho Shrutgyanam"