________________
क्रिया-कोश
२३७ केवली अन्तकर–अन्तक्रिया करने वाले जीव को तथा अन्तिमशरीरो जीव कोउसी भव में अन्तक्रिया करने वाले जीव को जानते हैं-देखते हैं !
७३.१५.३ अरिहंत-जिन केवली का अन्तक्रिया करने के पहले जीव तथा
अजीव को जानना - देखना :--- तेसिं च सासयंसि लोगंसि हेट्ठा विच्छिन्नंसि जाव उप्पिं उडमुईगागारसंठियंसि उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली जीवे वि जाणइ पासइ अजीवे वि जाणइ पासइ तओ पच्छा सिझइ जाव अंतं करेछ ।
-भग० श ७ । उ १ । प्र० ४ । पृ० ५०८-६
- उस नीचे में विस्तीर्ण यावत् ऊपर में ऊर्ध्वमृदंग के आकारवाले शाश्वतलोक में उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहंत-जिन-केवली जीव को जानते हैं और देखते हैं तथा अजीव को भी जानते हैं और देखते हैं ; उसके पश्चात् वे सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं यावत सर्व दुःखों का अन्त करते हैं।
७३.१६ अन्तक्रिया में होने वाले सकल कर्मक्षय को समझाने के दृष्टांत :
से जहा नामए केइ पुरिसे सुक्कं तणहत्थयं जाय-तेयंसि पक्खिवेज्जा, से नूनं मंडियपुत्ता ! से सुक्के तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसाविज्जइ ? हंता, मसमसाविज्जइ ।
से जहा नामए केइ पुरिसे तत्तसि अयकवल्लंसि उदयबिंदु पक्विवेजा, से नूनं मंडियपुत्ता! से उदयबिंदु तत्तसि अयकवल्लंसि पक्खित्त समाणे खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ ? हंता, विद्धंसमागच्छ३ ।
से जहा नामए हरए सिया पुण्णे, पुण्णाप्पमाणे, वोलट्टमाणे, वोसट्टमाणे, समभरघडत्ताए चिट्ठइ ? हंता, चिट्ठइ ।
अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरियंसि एगं महं णाव सयासवं, सयच्छिदं ओगाहेजा, से नूनं मंडियपुत्ता ! सा णावा तेहि आसवदारेहिं आपूरेमाणी आपूरेमाणी, पुण्णा, पुण्णप्पमाणा, वोलट्टमाणा, वोसट्टमाणा, समभरघडत्ताए चिठ्ठछ । हता, चिट्टइ।
"Aho Shrutgyanam"