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क्रिया-कोश पोग्गलं, ६ सह, ७ गंधं, ८ वायं, ६ अयं जिणे भविस्सइ वा ण वा भविस्सइ, १० अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करेस्सइ वा न वा करेस्सइ ।
-भग० श०८।उ २ । प्र० १६ । पृ० ५४० (ख) दस ठाणाई छउमत्थे णं सव्वभावेणं ण जाणइ ण पासइ, तंजहाधम्मत्थिकायं जाव वायं अयं जिणे भविस्सइ वा ण वा भविस्सइ अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सइ वा ण वा करेस्सइ ।
-~-ठाण० स्था १० । सू ७५४ ! पृ० ३१० छद्मस्थ जीव धर्मास्तिकायादि दश बोलों को सर्वभाव से ( साक्षात-प्रत्यक्ष रूप से ) नहीं जानता है, नहीं देखता है। कोई जीव अंतक्रिया करेगा या नहीं करेगा--ऐसा सर्वभाव से छमस्थ जीव नहीं जानता है, नहीं देखता है ।
(ग) तहा णं छउमत्थे वि अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो इण? सम? सोचा जाणइ पासइ ; पमाणओ वा ।
-भग० श ५।
उ प्र २२। पृ० ४७७ छदमस्थ मनुष्य केवली की तरह अंतकर जीव को अंतिमशरोरी जीव को नहीं जानता है, नहीं देखता है, पर किसी से सुनकर अथवा प्रमाण द्वारा अंतकर जोव और अंतिमशरीरी जीव को जानता है---देखता है ।
.७३.१५.२ केवली का अन्तक्रिया और अन्तकर को जानना और देखना :
(क) एयाणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे ( अरहा जाणइ पासइ) जाव अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सइ वा ण वा करेस्सइ ।
-ठाण स्था• १० । सू ७५४ । पृ० ३१० (ख) एयाणि चेव उप्पन्ननाणदसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तंजहा-धम्मत्थिकायं, जाव करेस्सइ वा न वा फरेस्सइ ।
-भग० श८। उ २ । प्र १६ । पृ० ५४० उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहंत—जिन-केवली कोई जीव अन्तक्रिया करेगा या नहीं करेगा-ऐसा सर्वभाव से जानते हैं, देखते हैं ।
(ग) केवली गं भंते ! अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ? हता, गोयमा ! जाणइ पासइ । जहा णं भंते ! केवली अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासह तहा णं छउमत्थे वि अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ? गोयमा! जो इण? समठे, सोचा जाणइ, पासइ ; पमाणओ वा ।
----भग० श ५ । उ ४ ! प्र २१,२२ । पृ० ४७७
"Aho Shrutgyanam"