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________________ क्रिया-कोश संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एगूणतीस भवग्गणेहिं सिज्झिरसंति बुझिामति मुञ्चित्संति परिनिव्वाइसंति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति । -सम० सम २६ । पृ० ३४१ सतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तीसाए भवम्गहणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्मंति मुश्चिस्संति परिनिव्वाइस्स ति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ! -सम० सम ३० 1 पृ० ३४३ संतेगड्या भवसिद्धिया जीवा जे एक्कतीसेहिं भवग्गणेहिं सिभिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइरसंति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । सम सम ३१ । पृ० ३४४ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे बत्तीसाए भवग्गणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । --सम० सम ३२ 1 पृ० ३४५ सतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तेत्तीसं भवग्गहणेहि सिज्झिरसंति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । --सम० सम ३३ । पृ० ३४५ कई एक भवसिद्धिक जीव एक पुनर्भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाण को प्राप्त होते हैं, सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। कई एक भवसिद्धिक जीव दो पुनर्भव, सोन पुनर्भव, चार पुनर्भव, पाँच पुनर्भव, छः पुनर्भव, सात यावत् तेत्तीस पुनर्भव ग्रहण करके सिद्ध-बुद्ध मुक्त होते हैं, निर्वाण को प्राप्त होते हैं तथा सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ! । यद्यपि पाठ ३३ भव तक पुनर्भव ग्रहण करके मुक्त होने के हैं लेकिन ऐसे भी भवसिद्धिक जीव होने चाहिए जो संख्यात पुनर्भव, असंख्यात पुनर्भव तथा अनन्त पुनर्भव ग्रहण करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं निर्वाण को प्राप्त होते हैं, तथा सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। •७३.१५ अन्तक्रिया और अंतकर का ज्ञान :---- •७३.१५.१ छद्मस्थ अंतक्रिया करने वाले को नहीं जानता है : (क) दस ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणइन पासइ, तंजहा–१ धम्मत्थिकायं, २ अधम्मत्थिकायं, ३ आगासस्थिकायं, ४ जीवं असरीरपडिबद्धं, ५ परमाणु- . "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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