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क्रिया-कोश
२२६ किया करने में केवल सात लवकालप्रमाण आयुष्य की कमी रह गई थी ; इसलिए देवलोक में उत्पन्न होना पड़ा अतः उन देवों को लक्सप्तमदेव कहा जाता है ।
सात लवप्रमाण काल लगभग इस प्रकार होता है :-कोई तरुण पुरुष जो यावत् शिल्पकला में निपुण हो वह पके हुए, झुके हुए, पीले पड़े हुए, पीली नालवाले शालि, श्री हि, गेहूँ, जव या जवाजव को एकत्रित करके, मुष्टि में पकड़कर शीघ्रतापूर्वक तीक्ष्ण नई धार वाले दाँती-हँसिया से काटे तो उस काटने की क्रिया में सात लवप्रमाण काल लगता है। •७३.१३.५ दक्षिणार्ध भारतवासी मनुष्य और अन्तक्रिया :--
दाहिणभरहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंघयणा बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपन्जवा बहुउपज्जवा बहूई वासाई आउं पालेंति पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी अप्पेगड्या तिरियगामी अप्पेगइया मणुयगामी अप्पेगइया देवगामी अप्पेगइया सिज्मंति, बुज्झिति, मुच्चति, परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।
-जम्बु । वक्ष १ । सू ११ ! पृ० ५३७ दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के कितनेक मनुष्य सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। :७३.१३.६ उत्तरार्ध भारतवासी मनुष्य और अन्तक्रिया :--
उत्तरभरहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेणं मणुया बहुसंघयणा जाव अप्पेगइया सिझति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।
-जम्बु० ! वक्ष १ ! सू १६ । पृ० ५४२
उत्तरार्ध भरतक्षेत्र के कितनेक मनुष्य सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते है।
.७३.१३.७ भरतक्षेत्र की विद्याधर-श्रेणी के मनुष्य और अन्तक्रिया :
विजाहरसेढी णं भंते ! मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंघयणा बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपज्जवा बहुआउपजवा जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।
- जम्बु० ! वक्ष १ । सू १२ । पृ० ५३६ विद्याधर श्रेणी के कितनेक मनुष्य सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं।
"Aho Shrutgyanam"