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क्रिया-कोश
२२१ जघन्य ज्ञानाराधना करने वाला कोई एक जीव तीन भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है लेकिन कोई भी जीव सात-आठ भव का अतिक्रमण नहीं करता है ।
जघन्य दर्शनाराधना करनेवाला कोई एक जीव तीन भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है लेकिन कोई भी जी व सात-आठ भव का अतिक्रमण नहीं करता है।
जघन्य चारित्राराधना करनेवाला कोई एक जीव तीन भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है, लेकिन कोई भी जीव सात-आठ भव का अतिक्रमण नहीं करता है ।
.७३.१२ कौन जीव अंतक्रिया नहीं करते हैं :•७३.१२.१ हिंसा की प्ररूपणा करने वाले जीव :----
तत्थ णं जे ते समणा माहणा एवमाइक्खंति जाव परूवेति-सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता हतव्या अज्जावेयवा परिघेयव्वा परितावेयव्वा किलामेयच्या उद्दवेयव्वा। ते आगंतुच्छेयाए, ते आगंतु-भेयाए जाव ते आगंतु-जाइ-जरा मरण-जोणि-जम्मण - संसार - पुणभवगम्भवास - भवपवंच-कलंकली भागिणो भविस्संति। ते बहूणं दंडणाणं बहूणं मुंडणाणं तज्जणाणं तालणाणं अंदुबंधणाणं जाव घोलणाणं माइमरणाणं पिइमरणाणं भाइमरणाणं भगिणीमरणाणं भज्जा पुत्तधूय-सुण्हामरणाणं दारिदाणं दोहग्गाणं अप्पिय-संवासाणं पियवियोगाणं बहूणं दुक्ख दोम्मणस्साणं आभागिणो भविस्संति। अणाइयं च णं अणवयम्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसारकतारं भुजो भुजो अणुपरियट्टिरसंति । ते णो सिभिरसंति णो बुझिासंति जाव णो सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति ।।
-सूय श्रु २ । अ २ । सू २६ । पृ० १५८-५९ वे श्रमण-ब्राह्मण जो ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण-भूत-जीवसत्त्वों का हनन करना चाहिए, दण्ड से ताड़ना करनी चाहिए, दासवृत्ति करानी चाहिए. शारीरिक-मानसिक पीड़ा उपजानी चाहिए, क्लेश और उद्वेग पहुँचाना चाहिए । भविष्यत्काल में वे सब जीव छेदन-भेदन को प्राप्त होगे। जाति, जरा, मरण, योनि, जन्म-- संसार में बार-बार जन्म लेकर गर्भ में आकर भव-प्रपंच में महान पीड़ा पायेंगे। वे बहुत कष्ट, मुण्डन, तर्जन, ताड़न, बन्धन, घुलन आदि तथा माता-पिता, भाई-बहन, स्त्री-पुत्रपुत्री-पुत्रवधू के मरण का दुःख सहन करेंगे। दरिद्रता, दुर्भाग्य, अप्रियप्राप्ति, प्रियवियोग आदि बहुत दुःख और मानसिक पीड़ा को सहेगे, वे इस अनादि-अनन्त चातुगतिक संसार रूपी अटवी में दीर्घकाल पर्यन्त बार-बार परिभ्रमण करेंगे।
"Aho Shrutgyanam"