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क्रिया-कोश
ज्ञान-दर्शन- चारित्र की आराधना से अन्तक्रिया :
उक्कोसियं णं भंते! णाणाराहणं आराहेत्ता कहिं भवग्गहणेहिं सिज्झइ जाव अंत करे ? गोयमा ! अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेहिं सिज्झइ जाव अंतं करेइ, अत्थेगइए दोषणं भवग्गहणेण सिझर जाव अंतं करेइ, अत्थेगइए कप्पोवएस वा कप्पातीयएसु वा ववज्जइ ; उक्कोसियं णं भंते ! दंसणाराहण आराद्देत्ता कहिं भवग्गहणेहि० एवं वेब ; उक्कोसियं णं भंते ! चरिताराहणं आराहेता० एवं चेव, नवरं अत्थेगइए कप्पातीयएस उववज्जइ ।
मज्झिमियं णं भंते! णाणाराहणं आराहेत्ता करहिं भवग्गहणेहि सिज्झइ जाव अंत करेइ ? गोयमा ! अत्थेगइए दोचणं भवग्गहणणं सिज्झइ जाव अंतं करेइ, तच्चं पुण भवग्गहणं नाइक्कमइ; मज्झिमियं णं भंते! दंसणाराहणं आराहेत्ता० एवं चेव ; एवं मज्झिमियं चरिताराहणं पि ।
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जहन्नियन्नं भंते! णाणाराहणं आराहेत्ता करहिं भवग्गहणेहिं सिज्झइ जाव अंत करे ? गोयमा ! अत्थेगइए तचणं भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अंतं करेइ, सत्त(अ) ट्ठभवग्गहणाई पुण नाइकमइ ; एवं दंसणाराहणं पि; एवं चरित्ताराहणं पि । - भग० श० ८ । उ १० प्र० ८ से १३ । पृ० ५७१
उत्कृष्ट ज्ञानाराधना करने वाला कोई एक जीव उसो भव में अन्तक्रिया करता है, कोई एक जीव दो भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है, कोई एक जीव कल्पोपपन्न अथवा कल्पातीत देवलोक में उत्पन्न होता है ।
उत्कृष्ट दर्शनाराधना करनेवाला कोई एक जीव कोई एक जीव दो भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है, कल्पातीत देवलोक में उत्पन्न होता है ।
उसी भव में अन्तक्रिया करता है, कोई एक जीव कल्पोपपन्न अथवा
उत्कृष्ट चारित्राराधना करनेवाला कोई एक जीव उसी भव में अन्तक्रिया करता है, कोई एक जीव दो भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है, कोई एक जीव कल्पातीत देवलोक में उत्पन्न होता है ।
मध्यम ज्ञानाराधना करने वाला कोई एक जीव दो भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है, लेकिन कोई भी जीव तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता है ।
मध्यम दर्शनाराधना करने वाला कोई एक जीव दो भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है, लेकिन कोई भी जीव तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता है ।
मध्यम चारित्राराधना करने वाला कोई एक जीव दो भव ग्रहण करके अन्तक्रिया करता है लेकिन कोई भी जीव तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता है ।
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