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क्रिया-कोश
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चारों अघाति कमों का क्षय करता है। तदनन्तर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्व दुःखों का अन्त करता है।
.५ चारित्रसंपन्नता से जीव अंतक्रिया करता है :--
चरित्तसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभावं जणयइ, सेलेसिं पतिवन्ने य अणगारे चत्तारिकम्मंसे खवेइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुझइ, मुच्चय, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमंतं करे।
---उत्त० अ २६ । सू ६२ । पृ० १०३५ चारित्रसंपन्नता से जीव शैलेशी भाव को प्राप्त करता है ; शैलेशी भाव को प्राप्त हुआ अणगार चारों अघाति कर्मों का क्षय करता है । तदनन्तर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर परिनिर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्व दुःखों का अन्त करता है।
'६ यथाख्यात चारित्र से अंतक्रिया : --
अहक्खाए--पुच्छा । गोयमा! एवं अहक्खायसंजए वि जाव-अहन्नमणुकोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उववजेजा, अत्थेगइए सिज्झइ, जाव- अंतं करेइ ।
- भग० श २५ | उ ७ । प्र २६ । पृ०८८८ यथाख्यात संयती कितनेक अनुत्तर विमान में उत्पन्न होते हैं, कितनेक सिद्ध-बुद्धमुक्त होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अंत करते हैं ।
'७ केवली-आराधना से अंतक्रिया :---
केवलिआराहणा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा--अतकिरिया चेव, कप्पविमाणोववत्तिया चेव ।
--ठाण स्था० २ । उ ४ । सू१०७ । पृ० २०१ केवली आराधना अर्थात केवलो-प्ररूपित धर्म की आराधना । मतिज्ञानी-श्रुतज्ञानीअवधिज्ञानी-मनःपर्ववज्ञानी-केवलज्ञानी संबंधी जो धर्मानुष्ठान क्रिया-केवलिकी क्रिया और इस प्रकार की आराधना को केवलिकी आराधना कहा जाता है।
फल की अपेक्षा से केवलिकी आराधना दो प्रकार की है-यथा--(१) अंतक्रिया केवलिको आराधना-भव का अंत करने वाली क्रिया और इस प्रकार की आराधना को अंतक्रिया केवलिकी आराधना कहा जाता है । (२) कल्पविमानोपपत्तिका आराधना-- जिस आराधना के द्वारा कल्प-विमानों में उपपात होता है वह कल्पविमानोपपत्तिका आराधना है !
टीकाकार का मंतव्य है कि ज्ञानादि की आराधना श्रुतकेवली आदि को होती है---- कल्पषिमानोपपत्तिका फल वाली आराधना अनंतर फल रूप कही गई है। वस्तुवृत्त्या परंपरा फल भवान्तर क्रिया के अनुसार होता है ।
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