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________________ क्रिया-कोश २१३ समये औदारिकतजसकार्मणरूपाणि त्रीणि शरीराणि 'सदाहिं विप्पजहणाहि' इति सर्वविप्रहानैः, सूत्रे स्त्रीत्वं प्राकृतत्वात्, विप्रजहाति, किमुक्तं भवति ?-यथा प्राक् देशतस्त्यक्तवान् तथा न त्यजति, किन्तु सर्वः प्रकारैः परित्यजतीति, उक्त च -“ओरालियाई चयइ सव्वाहिं विप्पजहणाहिं जं भणियं । निस्सेस तहा न जहा देसञ्चारण सो पुव्विं ॥ ” साकारोपयुक्तः सन् सिद्ध्यति निष्ठितार्थो भवति, सर्वा हि लब्धयः साकारोपयोगोपयुक्तस्य उपजायते नानाकारोपयुक्तस्य, सिद्धिरप्येषा सर्वलब्ध्युत्तमा लब्धिरिति साकारोपयोगोपयुक्तस्योपजायते, आह च-"सव्वाओ लद्धीओ जं सागारोषलोगलाभाओ। तेणेह सिद्धिलद्धी उप्पज्जा तदुवउत्तस्स ॥१॥' तदनन्तरं तु क्रमेणोपयोगप्रवृत्तिः । तदेवं यथा केवली सिद्धो भवति तथा प्रतिपादितमिदानी सिद्धा यथास्वरूपास्तत्रावतिष्ठन्ते तथा प्रतिपादयति-"ते णं तत्थ सिद्धा भवंती' त्यादि, ते-अनन्तरोक्तक्रमसम्भूता णमिति वाक्यालंकारे तत्र लोकान्ते सिद्धा भवन्ति । -पण्ण० प ३६ । सू२१७५ । टोका सयोगी केवली योगनिरोध करता हुआ पहले मनोयोग का निरोध करता है और वह पर्याप्तसंज्ञी पंचेन्द्रिय के प्रथम समय में जितना मनोद्रव्य और जितना उसका व्यापार होता है उससे असंख्यात गुण न्यून मनोयोग का प्रति समय निरोध करता हुआ असंख्यात समय में सर्वथा मनोयोग का निरोध करता है। किसी आचार्य ने कहा है--"जघन्य योग वाले पर्याप्त मात्र संज्ञी के जितने मनोद्रव्य होते हैं और जितना उसका व्यापार होता है उससे असंख्यातगुण हीन मनोयोग का समय-समय में निरोध करती हुआ असंख्यात समय में मनोयोग का सर्वथा निरोध करता है।" . समुद्घात किया हुआ केवली जब योगनिरोध करने की इच्छा करता है तो पहले वह जघन्य योग वाले पर्याप्त संज्ञी के मनोयोग से नीचे असंख्यात गुणहीन मनोयोग का समयसमय पर निरोध करता हुआ असंख्यात समय में प्रथम मनोयोग का निरोध करता है। तत्पश्चात् मनोयोग का निरोध करके जघन्य योगवाले पर्याप्त द्वीन्द्रिय के वचनयोग से नीचे असंख्यात गुणहीन वचनयोग को समय-समय पर निरोध करता हुआ असंख्यात समय में सर्वथा वचनयोग का निरोध करता है । इस सम्बन्ध में भाष्यकार ने कहा है--- "पर्याप्त मात्र द्वीन्द्रिय के जघन्य वचनयोग की जो पर्याय है उससे असंख्यात गुणहीन वचनयोग को समयसमय पर निरोध करता हुआ असंख्यात समय में सकल वचनयोग का निरोध करता है।" वचनयोग का निरोध करने के बाद अविलम्ब प्रथम समय उत्पन्न हुए अपर्याप्त सूक्ष्म पनकजीव के जितना जघन्य योग वाला तथा सबसे अल्पवीर्य वाला सूक्ष्म पनकजीव का "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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