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________________ २०८ क्रिया-कोश जाव च णं भंते ! से जीवे नो एयइ-जाव-नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ ? हंता, जाव-भवइ ।। से केण?ण-जाव-भवइ ? मंडियपुत्ता ! ( मंडिआ ! ) जावं च णं से जीवे सया समियं नो एयइ-जाव - नो परिणमइ, तावं च णं से जीवे नो आरंभइ, नो सारंभइ, नो समारंभइ ; नो आरंभे वट्टइ, नो सारंभे वट्टइ, नो समारंभे वट्टा ; अणारंभमाणे, असारंभमाणे, असमारंभमाणे; आरंभे अवट्टमाणे, सारंभे अवट्टमाणे, समारंभे अवट्टमाणे बहूणं पाणाणं, भूयाणं, जीवाणं, सत्ताणं अदुक्खवणयाएजाव - अपरियावणयाए वट्टइ। xxx से तेण?णं मंडियपुत्ता ! एवं वुश्चइ-जावं च णं से जीवे सया समियं णो एयइ, जाव-अंते अंतकिरिया भवइ । -भग० श ३ ! उ ३ । प्र १३-१५ | पृ० ४५७ जो जीव सदा समपूर्वक कम्पन नहीं करता है यावत उन-उन भावों में परिणमन नहीं करता है वह जीव अन्तक्रिया करता है क्योंकि जो जीव एजनादि क्रिया नहीं करता है, उन-उन भावों में परिणमन नहीं करता है वह आरम्भ-सारंभ-समारम्भ नहीं करता है, आरम्भसारम्भ-समारम्भ में नहीं वर्तता है, आरम्भमान-सारम्भमान-समारम्भमान नहीं है, आरम्भसारम्भ-समारम्भ में वर्तमान नहीं है वह जीव बहुत प्राण-भूत-जीव-सत्त्वों को दुःख-शोक आदि नहीं पहुँचाता है अतः उस कम्पनरहित जीव को अन्त समय में अन्तक्रिया होती है । •७३.६५ अक्रिय जीव उसी भव में अन्तक्रिया करता है: जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणणं सिझति-जाव--(बुज्झति, मुच्चंति, परिणिवायंति सव्वदुक्खाणं ) अंतं करेंति ? हंता, (गोयमा !) सिझति जाव अंतं करेंति। . ___ ---भग० श ४१ । उ १1 प्र १८ । पृ० ६३५ जो जीव अक्रिय हो जाता है वह उसी भव में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर परिनिर्वाण को प्राप्त करता है और सर्व दुःखों का अन्त करता है । ७३.६.६ तेरहवें क्रियास्थान में वर्तमान जीव अन्तक्रिया करता है : एयंसि चेव तेरसमे किरियाट्ठाणे वट्टमाणा जीवा सिझिसु बुझिसु मुच्चिसु परिणिन्वाइंसु जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा करंति वा करिस्संति वा। -सूय० श्रु २ । अ २ । सू २७ । पृ० १५६ तेरहवें क्रियास्थान (ऐयोपथिक क्रियास्थान) में वर्तता हुआ जीव अतीत काल में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर परिनिर्वाण को प्राप्त किया है तथा सर्व दुःखों का अन्त किया है, वर्तमान काल में सर्व दुःखों का अंत करते हैं तथा भविष्यत् काल में सर्व दुःखों का अंत करेंगे। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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