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क्रिया-कोश
२०8 ७३.६७ केवली अंतक्रिया करते हैं :
केवली णं भंते ! मणूसे अतीतं, अणंत, सासयं समयं जाव-अंतं करेंसु ?
हंता, सिभिंसु, जाव-अंतं करेंसु, एते तिन्नि आलावगा भाणियव्वा छउमत्थस्स जहा, नवरं-सिस्मिंसु, सिझति, सिज्झिस्संति । ।
से णूप्यं भंते ! अतीतं, अणंत, सासयं समयं पडुप्पण्णं वा सासयं समयं ; अणागयं अणंतं वा सासयं समयं जे केइ अंतकरा वा, अंतिमसरीरिया वा, सव्वदुक्खाणं अंत करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा ; सव्वे ते उत्पन्नणाणदंसणधरा, अरहा, जिणा (णे), केवली भवित्ता, तओ पच्छा सिझंति, जाव-तं करिस्संति वा? हंता, गोयमा ! अतीतं, अणंतं, सासयं जाव - अंतं करिस्संति वा ।
__ -भग० श १ । उ ४ । प्र १६१-६२ । पृ० ३६८ बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में केवली मनुष्य सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुआ है यावत् सर्व दुःखों का अन्त किया है ; वर्तमानकाल में करते हैं तथा भविष्यत् काल में करेंगे।
बोते हुए अनन्त शाश्वत काल में, वर्तमान शाश्वत काल में तथा अनंत शाश्वत भविष्यत् काल में अंतकरों ने, चरम शरीर वालों ने सर्व दुःखों का अन्त किया है, करते हैं तथा करेंगे। वे सब उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी, अरिहंत, जिन, केवली होकर फिर सिद्धबुद्ध मुक्त हुए हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
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७३.१० केवली जीव अंतक्रिया कैसे करते हैं :
[सयोगी केवली आवश्यकतानुसार समुद्घात करके या बिना किये ही अंतक्रिया की शेष पर्याय मनोयोग के निरोध से प्रारंभ करते हैं । ]
(क) अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहुत्तद्धावसेसाए जोगनिरोहं करेमाणे सहुमकिरियं अप्पडिवाईसुक्कझाणं झायमाणे तप्पढमयाए 'मणजोगं निरु भइ, मणजोगं निरुभित्ता वयजोगं निरंभइ, क्यजोगं निरुभित्ता ( कायजोगं निरु भइ, कायजोगं निलंभित्ता) आणपाणनिरोहं करेइ, आणपाणनिरोहं करित्ता, ईसिपंचहस्सक्खरुचारणद्वाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुक्कझाणं झियायमाणे वेयणिज आउयं नाम गोत्तं चत्तारि कम्मसे जुगवं खवेछ ।
तओ ओरालिय (तेय) कम्माइ च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विष्पज़हित्ता उज्जुसेढिपत्त अफुसमाणगई उर्ल्ड एगसमएणं अविम्गहेणं तत्थ गंता सागारोवउत्त सिज्झइ, बुज्झइ, मुञ्चइ, परिनिव्वाएन, सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ।
उत्त० अ २६ । सू ७३-७४ | पृ० १०३६
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"Aho Shrutgyanam"