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________________ क्रिया - कोश २०३ कृष्णलेशी पृथ्वीका यिक जीव कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक जीव से, कृष्णलेशी अपकायिक जीव कृष्णलेशी अप्कायिक जीव से तथा कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक जीव कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक जीव से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत सर्व दुःखों का अन्त करता है । नीललेशी पृथ्वीकायिक जीव नीललेशी पृथ्वीकायिक योनि से, नीललेशी अपकाविक जीव नीललेशी अपकायिक योनि से तथा नीललेशी वनस्पतिकायिक जीव नीललेशी वनस्पतिकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है; मनुष्य के शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है । ७३८ कहाँ से अनंतर मनुष्यभव में आकर जीव तीर्थ करत्व पाकर अन्तक्रिया करता है : रणभापुढविनेरइए णं भंते! रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरत्तं लभेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा से केणटुणं भंते ! एवं वुश्चइ – अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा ? गोयमा ! जस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स तित्थयर नामगोयाई कम्माई बद्धाई पुट्ठाई (निधत्ताई ) कडाइ पट्टविया निविट्ठाई अभिनिविट्ठाइ अभिसमन्नागयाई उदिन्नाई, णो उवसंताईं भ (ह) वंति से गं रयणष्पभापुढविनेरइए रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरतं लभेज्जा, जस्स णं रयणप्पभापुढ विनेरइयस्स तित्थयरनामगोयाइँ जो बद्धा जाव णो उदिन्नाई उवसंताई भ (ह) वंति से णं रयणप्पभापुढविनेरइए रणभापुढ विनेरइएहिंतो अनंतरं उब्वट्टित्ता तित्थयरत्त णो लभेज्जा, से तेणणं गोयमा ! एवं वुच्चइ – 'अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा' । एवं ( सक्करपभा० ) जाव वालुयप्पभापुढविने रइएहिंतो तित्थयरत्त लभेज्जा | पंकप्पभाढविनर णं भंते! पंकप्पभानेरइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता तित्थयरतं लभेज्जा ! गोयमा ! णो णट्ठे समट्ठ, अंतकिरियं पुण करेज्जा । xxx । असुरकुमारे पं० ( कुमारा णं ) पुच्छा । गोयमा ! णो इट्ठे समट्ठ, अंतकिरियं पुण करेज्जा । एवं निरंतरं जाव आउकाइए । xxx | वणफ ( स ) इकाइए नं० पुच्छा ! ( तित्थयरत लभेज्जा ) ! गोयमा ! णो इट्टे समट्ठे, अतकिरियं पुण करेज्जा | xxx | पंचिंदियतिरिक्खजोणिय - मणूस वाणमंतर जोइसिए गं० पुच्छा । (तित्थयरत लभेज्जा ? ) गोमा ! णो ण समट्ठ, अतकिरियं पुण करेज्जा | सोहम्मगदेवे णं भंते ! अणं "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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