SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ क्रिया - कोश तरं च ( चयं० च ) चत्ता तित्थयरत्त लभेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा, एवं जहा रयणप्पभापुढ विनेरइए, एवं जाव सव्वट्टसिद्धगदेवे | - पण० प २० सू० १४४४-१४४६, १४५०, ५१,५४, ५६-५८ । पृ० ४६३-६४ रत्नप्रभा पृथ्वी से अनन्तर मनुष्यभव में कोई नारक जीव तीर्थंकर पद प्राप्त करता है, कोई एक नहीं करता है। जिसने तीर्थंकर नाम - गोत्र - कर्म का बन्ध किया है, निधत्त किया है, कृत- निकाचित किया है, प्रस्थापित किया है, निविष्ट किया है, अभिनिविष्ट किया है, अभिसमन्वागत किया है, उदयाभिमुख किया है परन्तु उपशान्त नहीं किया है। वह तीर्थंकरत्व पद प्राप्त करता है तथा जिसने तीर्थंकर नाम - गोत्र-कर्म का बन्ध नहीं किया है यावत् उदय में लाया नहीं है लेकिन उपशान्त किया है वह तीर्थंकरत्व को प्राप्त नहीं करता है । इसी प्रकार शर्कराप्रभा -- बालुकाप्रभा पृथ्वी का कोई एक नारकी अनन्तर मनुष्यभव में तीर्थ करत्व को प्राप्त करता है, कोई एक नहीं करता है । नारको तीर्थ करत्व को धूमप्रभा पृथ्वी से अनन्तर करता है, अन्तक्रिया भी पंकप्रभा पृथ्वी से अनन्तर मनुष्यभव में आकर कोई भी प्राप्त नहीं करता है लेकिन कोई एक जीव अन्तक्रिया करता है । मनुष्यभव में आकर कोई भी नारकी तीर्थंकरत्व को प्राप्त नहीं नहीं करता है लेकिन कोई एक जीव सर्व विरति प्राप्त करता । तमप्रभा - पृथ्वी से अनन्तर मनुष्यभव में कोई भी नारकी तीथकरत्व को प्राप्त नहीं करता है, अन्तक्रिया भी नहीं करता है लेकिन कोई जीव देश विरति प्राप्त करता है । तमतमाप्रभा - पृथ्वी से कोई भी नारकी अनन्तर भव में तीर्थ करत्व को प्राप्त नहीं करता है, अन्तक्रिया भी नहीं करता है लेकिन कोई एक जीव सम्यक्त्व को प्राप्त करता है । असुरकुमार देव से अनन्तर मनुष्यभव पाकर कोई भी जीव तीर्थंकरत्व को प्राप्त नहीं करता है लेकिन कोई एक जीव अन्तक्रिया करता है । इसी प्रकार नागकुमार से यावत् अपकाय तक ऐसे ही जानना । अग्निकाय - वायुकाय से अनन्तर भव में कोई भी जीव तीर्थ करत्व को प्राप्त नहीं करता है तथा अन्तक्रिया भी नहीं करता है लेकिन कोई एक जीव केवली प्ररूपित धर्म का श्रवण करता है । वनस्पतिकाय से अनन्तर मनुष्यभव पाकर कोई भी जीव तीर्थंकरत्व को प्राप्त नहीं करता है लेकिन कोई एक जीव अन्तक्रिया करता है । द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय से अनन्तर मनुष्यभव पाकर कोई भी जीव तीर्थकरत्व को प्राप्त नहीं करता है, अन्तक्रिया भी नहीं करता है लेकिन कोई एक जीव मनःपर्यवज्ञान प्राप्त करता है । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy