________________
क्रिया - कोश
२०१ मुक्त नहीं होता है, निर्वाण को प्राप्त नहीं होता है तथा सर्व दुःखों को अन्त करने वाली अन्तक्रिया नहीं करता है ।
द्वीन्द्रिय जीव की तरह चतुरिन्द्रय जीव से अनन्तर मनुष्यभव से कोई जीव उत्पन्न होता है लेकिन केवलज्ञान उत्पन्न नहीं होता है अतः वह अनन्तर मनुष्यभव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त नहीं होता है, निर्वाण को प्राप्त नहीं होता है तथा सर्व दुःखों को अन्त करने वाली अन्तकिया नहीं करता है ।
-७३६ ७ तियंच पंचेन्द्रिय भव से अनंतर मनुष्यभव में अन्तक्रिया :
पंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो अनंतरं उट्टित्ता xxx | पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु मणूसेसु य जहा नेरइए ।
- पण्ण० प २० / सू १४३७-४० | पृ० ४६२-६३
जिस प्रकार नारकभव से अनन्तर मनुष्य भव में उत्पन्न होकर कोई जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है, निर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्वदुःखों को अन्त करनेवाली अन्तक्रिया करता है उसी प्रकार तिर्येच पंचेन्द्रियभव से अनन्तर मनुष्यभव में उत्पन्न होकर कोई एक जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है - निर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्वदुःखों को अन्त करने वाली अन्तक्रिया करता है ।
-७३६८ मनुष्यभव से अनंतर मनुष्यभब में अन्तक्रिया :
एवं मणूसेवि ।
-पण्ण० प २० । सू १४४२ | पृ० ४६३ तिर्यच पंचेन्द्रिय जीव की तरह मनुष्यभव से अनन्तर मनुष्य भव में उत्पन्न होकर कोई एक जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा वह सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है -- निर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्वदुःखों को अन्त करने वाली अन्तक्रिया करता है ।
*७३'६'६ वाणव्यंतर-ज्योतिषी वैमानिक देव से अनंतर मनुष्यभव में अन्तक्रिया वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिए (सु) जहा असुरकुमारे ।
- पण्ण० प २० / सू १४४३ | पृ० ४६३ जिस प्रकार असुरकुमार से अनन्तर मनुष्य भव में उत्पन्न होकर कोई जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है, निर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्वदुःखों को अन्त करनेवाली अन्तक्रिया करता है उसी प्रकार वाणव्यंतर - ज्योतिष वैमानिक देवभव से अनन्तर मनुष्य भव में उत्पन्न होकर कोई एक जोव केवल ज्ञान प्राप्त करता है तथा सिद्ध
२६
" Aho Shrutgyanam"