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क्रिया-कोश
. १६६ उत्पाडेज्जा । जे णं भंते ! मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा से णं केवलनाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए णो उप्पाडेज्जा । जे णं भंते ! केवलनाणं उप्पाडेज्जा से णं सिझज्जा बुझेज्जा मुच्चेज्जा सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा ? गोयमा ! सिज्झज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा।
--पण्ण० प २०। सू १४२१ । पृ० ४६१ संक्षिप्त अर्थः -- नारकभव से अनंतर मनुष्यभव में कोई एक नारकी जीव उत्पन्न होता है, कोई एक उत्पन्न नहीं होता है । जो मनुष्यभव में उत्पन्न होता है उसमें-यावत कोई एक जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है, कोई एक नहीं प्राप्त करता है। जो केवलज्ञान प्राप्त करता है वह सिद्ध बुद्ध-मुक्त होता है—निर्वाण को प्राप्त होता है तथा सर्व दुःखों को अंत करने वाली अंतक्रिया करता है । •७३.६२ भवनपति देव से अनंतर मनुष्यभव में अंतक्रिया :--
___असुरकुमारेणं भंते ! असुरकुमारेहितो अणंतर उव्वट्टित्ता xxx अवसेसेसु पंचसु पंचिंदियतिरिक्खजोणियाइसु असुरकुमारे (सु) जहा नेरइए (ओ); एवं जाव थणियकुमारा।
–पण्ण० प २० । सू १४२६ । पृ० ४६१-६२ जिस प्रकार नारकभव से अनंतर मनुष्यभव में उत्पन्न होकर कोई एक जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है..-निर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्व दुःखों को अन्त करने वाली अन्तक्रिया करता है उसी प्रकार असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देवभव से अनंतर मनुष्यभव में उत्पन्न होकर कोई एक जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा सर्व दुःखों को अन्त करने वाली अन्तक्रिया करता है ।। .७ ३.६.३ पृथ्वीकाय-अपकाय-वनस्पतिकाय से अनंतर मनुष्यभव में अन्तक्रिया :---
पुढविकाइए णं भंते ! पुढवीक्काइएहिंतो अर्णतरं उध्वट्टित्ता xxx पंचिंदियतिरिक्खजोणियमणुस्सेसु जहा नेरइए । xxx। एवं जहा पुढविक्काइओ भणिओ तहेव आउक्काइओ वि जाव वणस्सइकाइओ वि भाणियव्वो।
-पण्ण० प २० ! सू १४२७-२६ । पृ० ४६२ जिस प्रकार नारकभव से अनन्तर मनुष्य भव में उत्पन्न होकर कोई एक जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा सिद्ध बुद्ध-मुक्त होता है, निर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्व दुःख को अंत करने वाली अंतक्रिया करता है उसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव से अनंतर मनुष्य भव में उत्पन्न होकर कोई एक जीव केवलज्ञान प्राप्त करता है तथा सिद्धबुद्ध-मुक्त होता है निर्वाण को प्राप्त करता है तथा सर्व दुःखों को अन्त करने वाली अन्तक्रिया करता है।
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