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________________ क्रिया - कोश कारण कर्मों का क्षय करता है, तपस्वी होता है । उस जीव के उस प्रकार यथा-भगवान् महावीर के समान तप होता है, परीषह - उपसर्गादि की वेदना भी होती है । उसके उस प्रकार की पुरुषार्थं वाली लेकिन अल्पकाल की दीक्षा पर्याय होती है तथा उससे वह जीव सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है; यथा श्रीकृष्ण के लघु भाई गजसुकुमाल अणगार- -यह दूसरी अंतक्रिया है । १६५ (३) कोई जीव पूर्वभव से महाकर्म वाला होकर मनुष्यभव में आता है दीक्षा ग्रहण करके, गृहस्थ जीवन को त्याग कर अणगार - साधु हो जाता है । और संबर में बहुलता से प्रयत्नवत है यावत् उपधान - श्रुत में सुस्थिर होता है । दुःख के कारण कर्मों का क्षय करता है, तपस्वी होता है । उस जीव के उस प्रकार यथा--- भगवान महावीर के समान तप होता है, परीषह -- उपसर्गादि की वेदना भी होती है तथा उस प्रकार की पुरुषार्थ वाली दीर्घकाल की दीक्षा पर्याय होती है तथा उससे वह जीव सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अंत करता है; यथा— सनत्कुमार चक्रवर्ती - यह तीसरी अंतक्रिया है । (४) कोई जीव पूर्वभव से अल्पकर्म वाला होकर मनुष्यभव में आता है और वहाँ दीक्षा ग्रहण करके, गृहस्थ जीवन को त्यागकर अणगार - साधु हो जाता है । वह संयम और संत्र में बहुलता से प्रयत्नवंत है यावत् उस जीव के उस प्रकार यथा— भगवान महावीर के समान तप भी नहीं होता है, परीषह-उपसर्गादि की वेदना भी नहीं होती है और उस प्रकार की पुरुषार्थं वाली लेकिन अल्पकाल की दीक्षा पर्याय होती है तथा उससे वह जीव सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अंत करता है; यथा- -भगवती मरुदेवी- यह चतुर्थ अंतक्रिया है । -: और वहाँ वह संयम ७३.३ अन्तक्रिया और जीवदंडक जीवे णं भंते ! अंतिकिरियं करेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए करेज्जा, अत्थेगइए नो करेजा । एवं नेरख्ए जाव वैमाणिए । नेरइए णं भंते ! नेरए अंतकिरियं करेज्जा ? गोयमा ! नो इट्ठे समट्टे । नेरश्या णं भंते! असुरकुमारेसु अंतकिरिय करेज्जा ? गोयमा ! नो इट्ठे समट्ठे । एवं जाव वैमाणिएसु । नवरं मणूसेसु अंतकिरिय करेज्जत्ति पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइए करेज्जा, थत्थेगइए नो करेज्जा । एवं असुरकुमारा जाव वैमाणिए। एवमेव चरबीसं चउवीसं दंडगा भवंति । "Aho Shrutgyanam" — पण्ण० । पद २० | सू १४०७-६ । पृ० ४५६-६० कोई जीव अंतक्रिया करता है, कोई जीव नहीं करता है इसी प्रकार नारकी से लेकर यावत् वैमानिक देव तक सभी जीवदण्डकों के विषय में जानना ।
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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