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क्रिया-कोश - (ग) वोदाणेणं भंते ! जीवं किं जणयइ ? वोदाणेणं अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वायइ, सव्वदुक्खाणमंतं करेइ।
-उत्त० अ २६ । सू २४ । पृ० १०३२ कमों के व्यवदान अर्थात् कर्म के शोधन से अक्रिया होती है। अक्रिया से निर्वाण अर्थात् कर्मों से मुक्ति होती है ; तत्पश्चात जीव सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है तथा परिनिर्वाण को प्राप्त कर सर्व दु:खों का अन्त करता है । सिद्धगतिगमन रूप पर्यवसानफल अर्थात सबसे अन्तिम फल को प्राप्त करता है।
७२.४ अक्रिय भिक्षु :--
(क) से भिक्खू अकिरिए, अलूसिए, अकोहे, अमाणे, अमाए, अलोहे, उवसंते, परिनिव्वुडे ; xxx। इति से महओ आयाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिविरए।
- सूय • श्रु २ । अ १ । सू १५ । पृ० १४३-४४ टोका-स मूलोत्तरगुणव्यवस्थितो भिक्षुर्नास्य क्रिया सावद्या विद्यते इत्यक्रियः संवृत्तात्मकतया सांपरायिककर्माबंधक इत्यर्थः ।
(ख) से भिक्खू अकिरिए, अल्सए, अकोहे जाव अलोभे, उवसते, परिनिव्वुडे। एस खलु भगवया अक्खाए संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे अकिरिए संवुडे एगंतपंडिए भवइ।
-सूय० श्रु २ । अ४ । सू ५ । पृ० १६६ टोका-स भिक्षुनिवृत्तश्च सर्वाश्रवद्वारेभ्यो दंतप्रक्षालनादिकाः क्रियाः कुर्वन् सावधक्रियाया अभावाद क्रियोऽक्रियत्वाच्च ।
यहाँ जो भिक्षु को अक्रिय कहा गया है वह सर्व योगनिरोधात्मक चौदहवें गुणस्थान का अक्रिय नहीं है। यहाँ अक्रिया से सावधानुष्ठान-असदनुष्ठान क्रिया से रहित भिक्षु को ही ग्रहण करना चाहिए। यह भिक्षु सर्वहिंसा से निवृत्त, शरीर की शोभन क्रिया: यथा--दन्त-प्रक्षालन आदि क्रिया से निवृत्त होता है। तथा इस प्रकार साक्द्यानुष्ठान क्रियाओं से रहित होता है। अतः उसको सावध किया के अभाव के कारण अक्रिय कहा गया है।
.७३ अन्तक्रिया- . .७३.१ परिभाषा | अर्थ : --
(क) 'अन्तकिरिय' त्ति सकलकर्मक्षयरूपा। योगनिरोधाभिधानशुक्लध्यानेन सकलकर्मध्वंसरूपा अंतक्रिया भवति ।
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