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क्रिया-कोश
१६१ क्रियायां दर्शनशानचारित्रतपोविनयसमितीनां आराधनानुष्ठानविधौ भावेन रुचिर्यस्य स क्रियाभावरुचिः ।
यहाँ ग्रन्थकार ने दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति, गुप्तिरूप क्रियाओं में जो व्यक्ति भावरुचि रखता है उसको निश्चय से क्रियारूचि नाम सम्यक्त्व वाला कहा है क्योंकि वह उपर्युक्त क्रियाओं के करने में भावसे रुचि रखता है। .. ये सब क्रियायें सदनुष्ठान रूप क्रियायें हैं। टीकाकार के अनुसार जो व्यक्ति दर्शन, शान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति, गुप्ति रूप क्रियाओं की अनुष्ठान-विधि से भावआराधना करता है वह क्रियारूचि सम्यक्त्व का आराधक है।
“७२ अक्रिया (क्रिया का अभाव) .७२१ परिभाषा ! अर्थ :अक्रिया योगनिरोधलक्षणा।
--सम० सम १ । सू १८ टीका
-ठाण स्था ३ । उ ३ । सू १६° 1 टीका योगनिरोध अक्रिया है। 'शैलेशीकरणे योगनिरोधाद् नो एजते',—योग का निरोध होने से शैलेशीकरण की अवस्था में ऐर्यापथिक तथा ए जनादि क्रियाएँ बन्द हो जाती हैं और इन क्रियाओं का अभाव-अक्रिया है ।
•७२२ भेद :-- एगा अकिरिया।
---सम० सम १ । सू२ । पृ० ३१६ योगनिरोध से होने वाली क्रिया का अभाव रूप अकिया एक है।
.७२.३ अक्रिया किसका फल और उसका क्या फल :-- (क) से णं भंते ! वोदाणे कि फले ? (वोदाणे) अकिरिया फले । से गं भंते अकिरिया किंफला ? सिद्धिपज्जवसाणफला पन्नत्ता, गोयमा !
--भग० श २ । उ ५ । प्र४५-४६
४५-४६ । पृ० ४३१
Fo (ख) सवणे णाणे य विण्णाणे, पञ्चक्खाणे य संयमे ।
अणण्हए तवे चेव, चोदाणे अकिरिया निव्वाणे ॥
-- जाव-से णं भंते ! अकिरिया किं फला ? निव्वाणफला, सेणं भंते ! निव्वाणे किं फले ? सिद्धगइगमणपज्जवसाणफले पन्नत्ते, समणाउसो।
-ठाण० स्था३1 उ । ३ सू१६० । पृ० २१६
"Aho Shrutgyanam"