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________________ १८८ क्रिया-कोश __ अवशेष दण्डक के जीवों के संबंध में बहुवचन की अपेक्षा नारकियों की तरह जानना। जीव और एकेन्द्रियों को बाद देकर सभी के तीन-तीन दण्डक अर्थात् (१) सभी सात कर्मप्रकृति बाँधते है । (२) या कोई एक आठ कर्मप्रकृति बाँधता है शेष सब सात कर्मप्रकृति बाँधते हैं तथा (३) या अनेक सात तथा अनेक आठ कर्मप्रकृति बाँधते हैं । इसी प्रकार मृषावाद यावत मिथ्यादर्शनशल्य पापस्थानों के विषय में जानना । अठारह पापस्थान तथा एकवचन-बहुवचन की अपेक्षा ३६ दंडक होते है। ६६ पचीस क्रियाओं का समवाय से विवेचन अव्रतकषायेन्द्रियक्रियाः पञ्चचतुःपञ्चपञ्चविंशतिसंख्याः पूर्वस्य भेदाः । -तत्त्व० अ६ । सू ६ भाध्य–पञ्चविंशतिः क्रियाः। तत्रेमे क्रियाप्रत्यया यथासंख्यं प्रत्येतव्याः । तद्यथा-सम्यक्त्वमिथ्यात्वप्रयोगसमादानेर्यापथाः, कायाधिकरणप्रदोषपरितापनप्राणातिपाताः, दर्शनस्पर्शनप्रत्ययसमन्तानुपातानाभोगाः, स्वहस्तनिसर्गविदारणानयनानवकांक्षा, आरम्भपरिग्रहमायामिथ्यादर्शनाप्रत्याख्यानक्रिया इति । क्रिया पचीस होती है—पचीस क्रियाओं का समुच्चय विवेचन कहीं भी नहीं मिला । पाँच पंचकों के रूप में विवेचन मिला है ! यथा—सम्यक्त्व क्रिया, मिथ्यात्व क्रिया, प्रयोगक्रिया, समादान क्रिया, ऐपिथिकी क्रिया ; कायिकी क्रिया, आधिकरणिकी क्रिया, प्राद्वेषिकी क्रिया ; पारितापनिकी क्रिया, प्राणातिपातिकी क्रिया, ; दर्शन क्रिया, स्पर्शन क्रिया, प्रत्ययक्रिया, समन्तानुपातिकी क्रिया, अनाभोग क्रिया ; स्वहस्तक्रिया, निसर्गक्रिया, बैदारणिकी क्रिया, आनयनक्रिया, अनवकांक्षाक्रिया ; आरंभिकी क्रिया, पारिग्रहिकी क्रिया, मायाप्रत्ययिकी क्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया तथा अप्रत्याख्यान क्रिया । '७ सदनुष्ठानक्रिया का विवेचन [चौदहवें गुणस्थानवी जीव को छोड़कर सभी संसारी जोव सक्रिय हैं ! वे सावद्य या निरवद्य-किसी न किसी प्रकार की क्रिया करते रहते हैं। जो क्रियाएँ पापकर्म के बन्ध की हेतु हैं वे सावध हैं तथा जो क्रियाएँ कर्मों का छेदन करने वाली हैं वे निरवद्य हैं। इन कर्मों के छेदन करने वाली क्रियाओं को सदनुष्ठान किया कहा गया है । क्रिया से जीव कर्म का बंध करते हैं। सकषायी जीव क्रिया से सौपरायिक कर्म का बन्ध करते हैं तथा अकषायी जीव ऐपिथिक कर्म का बन्ध करते है। जब तक जीव "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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