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क्रिया-कोश
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जैसा औधिक जीवों का कहा वैसा सम्पूर्ण एकेन्द्रिय जीवों के संबंध में कहना ।
प्राणातिपात की तरह मृषावाद आदि अन्य सत्रह पापस्थानों के विषय में जीवों के बारे में कहना तथा उसी प्रकार चौबीस जीवदंडकों के बारे में भी सभी पापस्थानों के विषय में कहना |
६८२ पापस्थान क्रिया और कर्मप्रकृति का बंध :---
जीवे णं भंते! पाणावाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सत्तविह्नबंधए वा अट्ठविहबंध वा । एवं नेरइए जाव निरंतरं वैमाणिए ।
जीवा णं भंते! पाणाइवाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सत्तविहबंधा व अविबंधगा वि ।
नेरया णं भंते! पाणाइवाएणं कइ कम्मरगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे षि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा; अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य; अहवा सत्तविधगाय अट्ठविहबंधगा य ।
एवं असुरकुमारा वि जान थणियकुमारा ।
पुढवितेउवाउवणरसइकाइया य एए सव्वे वि जहा ओहिया जीवा, अवसेसा जहा नेरइया । एवं ते जीवेगिंदियवज्जा तिण्णि तिष्णि भंगा सव्वत्थ भाणियव्वति, जाव मिच्छादंसणसल्लेणं, एवं एगत्तपोहत्तिया छत्तीसं दंडगा होंति ।
- पण० पद २२ / सू १५८१-८४ । पृ० ४७६-८०
जीव प्राणातिपात (क्रिया) द्वारा सात कर्मप्रकृति बांधता है, या आठ कर्मप्रकृति बाँधता है । इसी प्रकार नारकी से लेकर वैमानिक तक एकवचन की अपेक्षा जानना । जिस समय आयुषकर्म का बंध नहीं होता उस समय सात कर्मप्रकृति का बंध होता है तथा जब आयुषकर्म का भी बंध होता है तब आठ कर्मप्रकृति का बंध होता है !
जीवों की अपेक्षा अनेक जीव सात कर्मप्रकृति बाँधते हैं, अनेक जीव आठ कर्मप्रकृति बाँधते हैं ।
नारकियों की अपेक्षा या सर्व नारकी सात कर्मप्रकृति बाँधते हैं, या कोई एक आठ कर्मप्रकृति बाँधता है, शेष सब सात कर्मप्रकृति बाँधते हैं तथा या अनेक नारकी सात कर्मप्रकृति बाँधते हैं तथा अनेक आठ कर्मप्रकृति बाँधते हैं ।
नारकियों की तरह असुरकुमारों से यावत् स्तनितकुमारों तक जानना । एकेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में औधिक जीवों की तरह जानना ।
"Aho Shrutgyanam"