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क्रिया-कोश
१८५ ६७ त्रय क्रियापंचक ६७.१ दंडक के जीव और दृष्टिका क्रियापंचक :
पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-दिट्ठिया, पुट्ठिया, पाडुच्चिया, सामंतोवणियाइया, साहत्थिया, एवं नेरक्याणं जाव वेमाणियाणं ।
-ठाण. स्था ५। २। सू४१६ । पृ० २६२ नारको जीवों से लेकर पैमानिक जीषों तक वंडक के सभी जीवों के रष्टिका क्रिया पंचक की पाँचों क्रियाएँ होती हैं ।
६७.२ दंडक के जीव और आज्ञापनिका क्रियापंचक :---
पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तंजहा--णेसत्थिया, आणवणिया, वेयारणिया, अणाभोगवत्तिया, अणवखवत्तिया, एवं जाव वेमाणियाणं ।
ठाण० स्था ५ । उ २१ सू ४१६ । पृ०२६२ नारकी जीवों से लेकर वैमानिक जीवों तक दंडक के सभी जीवों के आशापनिका क्रियापंचक की पाँचों क्रियाएँ होती है।
६७.३ दंडक के जीव और रागप्रत्ययिकी क्रियापंचक :
पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तंजहा पेजवत्तिया, दोसवत्तिया, पओगकिरिया, समुदाणकिरिया, ईरियावहिया, एवं मणुस्साण वि, सेसाणं णत्थि ।।
-ठाण० स्था ५ । उ २ । सू ४१६ । पृ० २६२-६३ मनुष्य के रागप्रत्ययिकी क्रियापंचक की पाँचों क्रियाएँ होती हैं। मनुष्य बाद शेष दंडक के जीवों के रागप्रत्ययिकी क्रियापंचक की पाँचों क्रियाएँ नहीं होती है।
विश्लेषण- यहाँ रागप्रत्ययिकी क्रियापंचक का सामान्य पद से कथन किया गया है ; चविंशति दंडकों में से यह केवल मनुष्य दंडक में ही संभव है । यद्यपि रागप्रत्ययिकी, द्वेषप्रत्ययिको, प्रयोगक्रिया, समुदान क्रिया-ये चारों क्रियाएँ नारकी जीवों से लेकर वैमानिक जीवों तक के सभी जीवों में होती हैं। लेकिन ऐपिथिकी क्रिया ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें गुणस्थानवर्ती जीवों-मनुष्यों के होती है । अतः शेष दंडक के जीवों के रागप्रत्ययिकी क्रियापंचक की पाँचौ क्रियाएँ नहीं होती हैं।
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