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________________ १८२ क्रिया-कोश '६ धनुर्धर के : पुरिसे णं भंते ! धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुपरामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाइ, ठित्ता आययकण्णाययं करेइ, (आययकण्णाययं उसुकरेता उसु) उड्ढे बेहासं उसु उव्विहइ, तएणं से उसु उड्ढे वेहासं उबिहए समाणे जाई तत्थ पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई अभिहणइ, वत्तइ, लेसेइ, संघाएइ, संघट्टइ, परियावेइ, किलामेइ, ठाणाओ ठाणं संकामेइ, जीवियाओ ववरोवेइ, तए णं भंते ! से पुरिसे कइकिरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे धणु परामुसइ, परामुसित्ता–जावउव्विहइ, तावं च णं पुरिसे काश्याए -जाव-पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पु?, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणु निव्वत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाएजाव-पंचहि किरियाहिं पुढे, एवं धणु पुढे पंचहि किरियाहिं, जीवा पंचहिं, न्हारू पंचहि, उसू पंचहि, सरे, पत्तणे, फले, न्हारू पंचहिं । अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए, भारियन्ताए, गुरूसंभारियत्ताए, अहे वीससाए पञ्चोवयमाणे जाई (तत्थ) पाणाई-जाव-जीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कइ किरिए ? गोयमा ! जावं च णं से उसु अप्पणो गुरुयत्ताए,जाव-ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए-जाव-चउहि किरियाहिं पुढे; जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणु निव्वत्तिए ते वि जीवा चउहि किरियाहिं, धणु पुढे चउहि, जीवा चउहिं, न्हारू चउहिं, उसू पंचहिं, सरे, पत्तणे, फले, न्हारू पंचहि, जे वि य से जीवा अहे पञ्चोवयमाणस्स डवगहे वर्ल्ड ति ते वि य णं जीवा काइयाएजाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा। -भग श ५ । उ ६ । प्र १०-११ । पृ० ४८१ कोई पुरुष धनुष को ग्रहण करे ; धनुष को ग्रहण करके बाण को ग्रहण करे ; बाण को ग्रहण करके यथायोग्य आसन ग्रहण करे ; आसन को ग्रहण करके बाण व प्रत्यञ्चा को कान तक खींचे ; कान तक खींचकर बाण को ऊँचा आकाश में छोड़े और ऊँचे आकाश में छोड़ा हुआ वह वाण आकाश में अभिमुख जाते हुए तत्र स्थित जिन प्राण-भूत-जीव-सत्त्वों का अभिहनन करे, हेर-फेर करे, श्लिष्ट करे, परस्पर संघात करे, तीन संघात वा स्पर्श करे, पीड़ा पहुँचावे, क्लान्त करे, स्थानान्तर करे और प्राण-रहित करे तो धनुष ग्रहण करने से लेकर यावत् धनुष छोड़ने तक वह पुरुष कायिकी आदि पाँच कियाओं से स्पृष्ट होता है । जिन-जिन जीवों के शरीर से धनुष बना, धनुष की पीठ बनी-वे जीव पाँच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं ; जिन-जिन जीवों के शरीर से जीवा (डोरी) बनी, न्हारु बनी, बाण बना-वे जीव पाँच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं, जिन-जिन जीवों के शरीर से शर, पत्र, फल, न्हारु बने- वे सब जीव पाँच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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