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________________ १८० क्रिया - कोश कृतसन्धानं भवति । तथा निर्वृत्यमानं नितरां वर्तुली क्रियमाणं प्रत्यक्चाकर्षणेन नितिं वृत्तीकृतं मण्डलाकारं कृतं भवति, तथा निस्सृज्यमानं निक्षिप्यमाणं काण्डनिसृष्टं भवति । यदा च निसृज्यमानं निसृष्टं तदा निस्सृज्यमानतया धनुर्द्धरेण कृतत्वात्तेन । काण्डनिसृष्टं भवति -- काण्डनिसर्गाश्च मृगस्तेनैव मारितः । क्रियामाण को कृत कहना - यह एक जैन दर्शन का महत्त्वपूर्ण, प्रमुख सिद्धान्त है जिसका अर्थ है जो काम किया जा रहा है' उसको 'किया हुआ' कहना चाहिए । यद्यपि काम सम्पूर्ण नहीं हुआ है लेकिन काम का करना प्रारम्भ हो गया है उसको जैनदर्शन के अनुसार 'किया हुआ' कहा जाता है । 'कज्ज माण', 'संधिजमाण', 'निवित्तिज्जमाण' तथा 'निसिरिज्जमाण' इन चारों शब्दों को टीकाकार ने धनुषधारी व्यक्ति की कियाओं पर घटाया है । १ - कज्जमाण क्रियमाण – धनुषधारी व्यक्ति जो धनुष और बाण को ग्रहण कर रहा है वह 'ग्रहण किया' कृत - ( ग्रहण ) कहा जाता है । २ -- संधिज्जमाण - संधीयमान-धनुष और प्रत्यञ्चा में बाण को जो आरोपण कर रहा है वह 'आरोपित -कृतसंधान' कहा जाता है । ३- निवित्तिज्जमाण - निर्वर्त्यमान- प्रत्यञ्चा को टान कर धनुष को वर्तुल बनाकर बाण को छोड़ने की जो तैयारी की जा रही है वह 'छोड़ने को तत्पर हुआ - निर्वर्त्तित' कहा जाता है । ४- निसिरिज्जमाण- निक्षिप्यमाण—टानी हुई प्रत्यञ्चा के ढीली पड़ने से बाण धनुष से निकल रहा है उसको 'निकला हुआ— निसृष्ट' कहा जाता है । उस गला कटे हुए व्यक्ति का हाथ शिथिल होने से, प्रत्यञ्चा ढीली पड़ गई और प्रत्यचा ढीली पड़ जाने से तीर धनुष से निकल गया और उससे मृग बींधा जाकर मर गया । धनुषधारी व्यक्ति गला कटने के समय बाण छोड़ रहा है-- निसृज्यमान है अतः 'छोड़ा हुआ — निसृष्ट काण्ड - निक्षिप्तबाण' कहा जाता है। इसलिए धनुषधारी व्यक्ति को मृग को मारने वाला कहा जाता है । 'क्रियमाण कृत' सिद्धान्त के अनुसार गला कटने वाला व्यक्ति बाण छोड़ रहा है अतः 'छोड़ा हुआ' कहा गया है । छोड़े हुए बाण से मृग के मरने से उसको मृग का वधिक कहा गया है । टीका - षण्मासान् यावत्प्रहारहेतुकं मरणम्, परतस्तु परिणामान्तरापादितमिति कृत्वा षण्मासादूर्ध्वं प्राणातिपातक्रिया न स्यादिति हृदयम् । एतच्च व्यवहारनयापेक्षया प्राणातिपातक्रियाव्यपदेशमात्रोपदर्शनार्थमुक्तम् ; अन्यथा यदा कदाऽप्यधिकृतप्रहारहेतुकं मरणं भवति तदैव प्राणातिपातक्रियेति । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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