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क्रिया-कोश '४ मृगवधिक का :
पुरिसे गं भंते ! कच्छसि वा-जाव-~-अण्णयरस्स मियस्स वहाए आययकण्णाययं उसु आयामेत्ता चिट्ठजा, अन्ने य ( अन्नयरे ) से पुरिसे मग्गओ आगम्म सयपाणिणा, असिणा सीसं छिदेजा, से य उसूताए चेव पुवायामणयाए तं मियं विधेना. से गं भंते ! पुरिसे मियवेरेणं पुढे, पुरिसवेरेणं पुढे ? गोयमा ! जे मियं मारेइ, से मियवरेणं पुढे । जे पुरिसं मारेइ, पुरिसवेरेणं पुढे ।।
से केण?णं भंते ! एवं बुच्चई - जाव-से पुरिसवेरेणं पुढे १ से नूणं गोयमा ! कजमाणे कडे, संधिजमाणे संधित्ते, निवित्तिजमाणे निवित्तते, निसिरिज्जमाणे निसि? त्ति वत्तव्वं सिया ? हंता, भगवं! कन्जमाणे कडे - जाव-निसिढे त्ति वत्तव्वं सिया।
से तेण?णं गोयमा ! जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुढे । जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुढें। अंतोछण्हं मासाणं मरइ, काइयाए --जाव-पंचकिरियाहिं पुढे । बाहिंछण्हं मासाणं मरइ, काइयाए. - जाव-पारियावणियाए चउहिं किरियाहिं
--भग० श १ । उ८। प्र २७०-७१ । पृ० ४०६ शिकार-संकल्पी, शिकार में दत्तचित्त, मृगया-जीवी कोई पुरुष कच्छार यावत् ( देखो क्रमांक ६६ १६.१) किसी मृग या अन्य पशु को मारने के लिए धनुष को कान तक टानकर, बाण को प्रयत्न पूर्वक खींचकर खड़ा हो उस समय अन्य कोई व्यक्ति पीछे से आकर उस खड़े हुए पुरुष का सिर अपने हाथ से तलवार द्वारा काट डाले। उस समय वह टना हुआ बाण पहले के खिंचाव से छूटकर उस मृग को वींध डाले तो जो पुरुष तीर से मृग को मारता है वह मृग के वैर से स्पृष्ट है तथा जो असिधारी पुरुष धनुषधारी पुरुष को मारता है वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है।
__क्योंकि यह निश्चित है--क्रियमाण कृत अर्थात जो किया जा रहा है वह किया हुआ' कहलाता है, जो संधान किया जा रहा है वह 'संधान किया हुआ' कहलाता है, जो तैयार किया जा रहा है वह तैयार किया हुआ' कहलाता है, जो छोड़ा जा रहा है वह 'छोड़ा हुआ' कहलाता है-इस कारण से जो मृग को मारता है वह मृग के वैर कहलाता है तथा जो पुरुष को मारता है वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट कहलाता है और यदि मरने वाला छः मास के अन्दर मर जाता है तो मारने वाला व्यक्ति कायिकी आदि पाँच क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है, यदि मरने वाला छः मास के बाद मरता है तो मारने वाला व्यक्ति कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है ।
टोका :--क्रियमाणं धनुष्काण्डादि कृतमिति व्यपदिश्यते। युक्तिस्तु प्राग्वत । तथा सन्धीयमानं प्रत्यञ्चायामारोप्यमाणं काण्डं धनुर्वाऽऽरोप्यमाणप्रत्यञ्च सन्धित
"Aho Shrutgyanam"