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क्रिया - कोश
१७३
-६६ १५ कायिकी आदि क्रियाओं की पारस्परिक नियमा भजना - समय- देश-प्रदेश की अपेक्षा
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जं समयं णं भंते! जीवरस काइया किरिया कज्जइ तं समयं अहिगरणिया किरिया कज्जइ, जं समयं अहिगरणिया कज्जइ तं समयं काव्या किरिया कज्जर ? एवं जहेव आइल्लओ दंडओ (भणिओ), तहेव भाणियव्वो, जाव वैमाणियस्स । जं देसं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया तं देसं णं अहिगरणिया किरिया कज्जइ १० तहेब-जाव वैमाणियस्स | जं पएसं णं भंते! जीवस्स काइया किरिया तं पएसं णं अहिगरगिया किरिया कज्जइ १० एवं तहेव जाव वैमाणियम्स । एवं एए जम्स, जं समयं, जं देर्स, जं पएसं णं चत्तारि दंडगा होंति ।
पण
२२ । सू० १६१४ से १६१६ / ० ४८२ 'जिस समय कायिकी क्रिया होती है उस समय आधिकरणिको क्रिया होती है या नहीं' इत्यादि प्रश्नों के उत्तर में, 'जिस देश में कायिकी क्रिया होती है उस देश में आधिकरणिकी क्रिया होती है या नहीं' इत्यादि प्रश्नों के उत्तर में तथा 'जिस प्रदेश में कायिकी क्रिया होती है उस प्रदेश में आधिकरणिकी क्रिया होती है या नहीं' इत्यादि प्रश्नों के उत्तर में वैसे ही सम्पूर्ण आलापक कहने चाहिए जैसे आलापक 'जिस जीव के कायिकी क्रिया होती है उसके आधिकरणिकी किया होती है या नहीं' - इत्यादि प्रश्नों के उत्तर में कहे गये हैं । ( देखो क्रमांक ६६ १४ )
इस प्रकार कायिकी क्रियापंचक के सम्बन्ध में (१) जिस जीव के, (२) जिस समय इन चार दण्डकों का विवेचन करना चाहिए । सामान्य काल का ग्रहण करना चाहिए न कि क्योंकि बाण आदि के निक्षेप के द्वारा जो कायिकी आदि क्रिया के प्रथम
में, (३) जिस देश में, (४) जिस प्रदेश में टीकाकार ने कहा है - यहाँ समय निश्चय नयवाले अतिसूक्ष्म 'समय' काल का परितापन और प्राणातिपात होता
से
।
वह
समय में
असम्भव है ।
देश और प्रदेश को क्षेत्र की अपेक्षा ग्रहण करना चाहिए ।
६६.१६ क्रियाओं की स्पृष्टता की नियमा भजना जीव और समय की अपेक्षा
जीवे णं भंते ! जं समयं काश्याए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुट्ठे समयं पारियावणियाए ( किरियाए ) पुट्ठे, पाणाश्वायकिरियाए पुट्ठे ? गोयमा ! अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुट्ठे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुट्ठे, पाणाइवाय किरियाए
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