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क्रिया-कोश पु? (१); अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पु? तं समयं पारियावणियाए किरियाए पु?, पाणाश्वायकिरियाए अपु? (२); अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काश्याए अहिगरणियाए पाओसियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए अपुढे, पाणाइवायकिरियाए अपु? (३) ।
--पण्ण० प २२ । सू १६२० । पृ० ४८२ कोई जीव कोई एक जीव की अपेक्षा जिस समय–कायिकी आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया के द्वारा स्पृष्ट होता है उस समय पारितापनिकी क्रिया द्वारा स्पृष्ट होता है तथा प्राणातिपातिकी क्रिया के द्वारा स्पृष्ट होता है (१) या कोई जीव कोई एक जीव की अपेक्षा जिस समय कायिकी-आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया के द्वारा स्पृष्ट होता है उस समय पारितापनिकी क्रिया द्वारा स्पृष्ट होता है लेकिन प्राणातिपातिकी क्रिया द्वारा स्पृष्ट नहीं होता है (२) या कोई जीव कोई एक जीव की अपेक्षा जिस समय कायिकीआधिकरणिको और प्राद्वेषिकी क्रिया के द्वारा स्पृष्ट होता है उस समय न पारितापनिकी क्रिया के द्वारा स्पष्ट होता है. न प्राणातिपातिकी क्रिया द्वारा।
यहाँ-समय का भाव--सामान्य काल की अपेक्षा ग्रहण करना चाहिए !
उदाहरणतः मृग शिकार के लिए बाण का निक्षेप करने पर जब मृग बाण द्वारा बांधा जाता है उस समय उसकी मृत्यु न हो तो जीव मृग की अपेक्षा केवल पारितापनिकी क्रिया द्वारा स्पृष्ट होता है परन्तु प्राणातिपातिकी क्रिया द्वारा स्पृष्ट नहीं होता है और यदि बाण से बींधने से मृग की मृत्यु हो जाय तो पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी दोनों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। यदि बाण निक्षेप से लक्ष्य भंग हो जाय तो पारित पनिकी क्रिया और प्राणातिपातिकी क्रिया दोनों से स्पृष्ट नहीं होता है ।
( अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए अपुढे तं समयं पारियावणियार किरियाए अपुढे पाणवायकिरियाए अपुढे)
-पपण° प २२ । सू १६२० कोई एक जीव कोई एक जीव की अपेक्षा जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्रादेषिकी क्रिया के द्वारा अस्पृष्ट होता है उस समय पारितापनिकी क्रिया तथा प्राणातिपातिकी क्रिया के द्वारा भी अस्पृष्ट होता है ।
"Aho Shrutgyanam"