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क्रिया - कोश
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जिस जीव के आदि की तीन क्रियाएँ होती हैं उनके पंचक की शेष दो क्रियाएँ (पारितापनिकी प्राणातिपातिको ) कदाचित होती है, कदाचित नहीं होती है। जिस जीव के पंचक की शेष की दो क्रियाएँ होती हैं उसके आदि की तीन कियाएँ अवश्य होती हैं ।
(ज) जस्स णं भंते ! जीवस्स पारियावणिया किरिया कजइ तस्स पाणाइवायकिरिया कज्जइ, जस्स पाणाश्वायकिरिया कज्जह तस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! जस्स णं जीवत्स पारियावणिया किरिया कज्जइ तहस पाणाश्वायकिरिया सिय कज्ज, सिय नो कज्जइ, जस्स पुण पाणाश्वायकिरिया कज्जइ तस्स पारियावणिया किरिया नियमा कज्जइ । - पृण्ण ० प २२ । सू १६१२ | पृ० ४८१ जिस जीव के पारितापनिकी क्रिया होती है उसके प्राणातिपातिकी किया कदाचित होती है, कदाचित नहीं होती है । लेकिन जिसके प्राणातिपातिकी क्रिया होती है उसके पारितानिको किया नियम से होती
(झ) जस्स णं भंते! नेरइयस्स काइया किरिया कज्जव तरस अहिगरणिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! जहेव जीवरस तहेव नेरइयरस वि, एवं निरंतर जाब वैमाणियरस | - पण्ण० प २२ / १६१२ | पृ० ४८१-८२ जैसे जीव के सम्बन्ध में कायिकी क्रियापंचक की पारस्परिक भजना- नियमा कही वैसे ही नारक जीवों से लेकर यावत् वैमानिक देवों तक दण्डक के सभी जीवों के लिये कहना !
टीका - इह कायिकी क्रिया औदारिकादिक्रियाश्रिता प्राणातिपातनिर्वर्त्तनसमर्था प्रतिविशिष्टा परिगृह्यते न या काचन कार्मणकायाश्रिता वा, तत आद्यानां तिसृणां क्रियाणां परस्परं नियमानियामकभावः, कथमिति चेत्, उच्यते, कायोऽधिकरणमपि भवतीत्युक्तं प्राक्, ततः कायस्याधिकरणत्वात् कायिक्यां सत्यामवश्यमाधिकरणिकी आधिकरणिक्यामवश्यं कायिकी, सा च प्रतिविशिष्टा कायिकी क्रिया प्रद्वेषमन्तरेण न भवति ततः प्राद्वेषिक्याऽपि सह परस्परमविनाभावः, प्रद्वेषोऽपि च प्रत्यक्षत एवोपलभ्भात्,
काये स्फुटलिंग एव वक्ररुक्षत्वादेस्तद विनाभाविनः
उक्तं च---
“क्षयति रुष्यतो ननु वक्रं स्निह्यति च रज्यतः पुंसः । औदारिकोऽपि देहो भाववशात् परिणमत्येवम् ॥”
परितापनस्य प्राणातिपातस्य चाद्यक्रियात्रयसम्भवेऽप्यनियमः, कथमिति चेत्, उच्यते, यद्यसौ घात्यो मृगादिर्घातकेन धनुषा क्षिप्तेन बाणादिना विध्यते ततस्तस्य परितापनं मरणं वा भवति नान्यथा, ततो नियमाभावः, परितापनस्य प्राणाति
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