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क्रिया - कोश १६६ आहारक समुद्घात करने वाले जीव की अपेक्षा कदाचित तीन, कदाचित् चार, कदाचित पाँच क्रिया होती है ।
आहारक समुद्घात करने वाले जीव के तथा समुद्घात से निर्गत पुद्गलों द्वारा हननादि किये जाने वाले जीवों के साथ अन्य जीव का परंपर-आघात होने से उस आहारक समुद्घात से निर्गत पुद्गलों द्वारा हननादि किये जाने वाले जीवों के परम्परा घातित अन्य जीवों की अपेक्षा कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है ।
चूँकि आहारक समुद्घात केवल मनुष्य ही करता अतः मनुष्य पद में भी ऐसा ही पाठ कहना चाहिए ।
'६६.१३ ७ कायिकी क्रियापंचक और केवलि समुद्घातः
(क) अणगाररस णं भंते । भावियपणो केवलिसमुग्धाएणं समोहयरस जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोमाला पन्नत्ता ? समणाउसो ! सव्वलोगंपि य ते फुसित्ताणं चिट्ठति ? हंता, गोयमा ! अणगारस्स भावियप्पणी केवलिसमुग्धाएणं समोहयम्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता, समणाउसो ! सव्वलोगंपि य णं कुसिन्ताणं चिट्ठति ।
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-पण्ण० प ३६ । सू २१६८ । पृ० ५३१
(ख) अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्धाएणं समोहणित्ता केवलकम्पं लोयं फुसित्ताणं चिट्ट ? हंता, चिट्ट ।
से
भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोगलेहि फुडे ? हंता, फुडे ।
- उ० सू ४२ | पृ० ३५
भावितात्मा अणगार के स्पर्श करके रहते हैं ;
केवलिसमुद्घात से समवहत - केवलिसमुद्घात करने वाले अंतिम समय के निर्ज्जरित पुद्गल सूक्ष्म होते हैं और वे सर्वलोक को केवलि के कायिकी आदि क्रिया नहीं होती सयोगी केवलि के मात्र ऐय्यपथिक क्रिया होती है ; केवलिसमुद्घात के समय में भी कायिकी आदि क्रिया नहीं होती है क्योंकि उनके द्वारा निर्जरित पुद्गल सूक्ष्म होते हैं ।
"Aho Shrutgyanam"
६६ १४ जीव और कायिकी क्रियापंचक की पारस्परिक नियमा-भजना :
(क) जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तरस अहिगरणिया किरिया कज्जइ, जरस अहिगरणिया किरिया कज्जइ तरस काइया किरिया कज्जइ ?
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